Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
दशम स्थान
उत्पातपर्वत-सूत्र
४७— चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तिगिंछिकूडे उप्पातपव्वते मूले दस बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पण्णत्ते ।
६९१
असुरेन्द्र, असुरकुमारराज चमर का तिगिंछकूट नामक उत्पात पर्वत मूल में दश सौ बाईस (१०२२) योजन विस्तृत कहा गया है (४७)।
४८ - चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सोमस्स महारण्णो सोमप्पभे उप्पातपव्वते दस जोयणसयाई उड्डुं उच्चत्तेणं, दस गाउयसताई उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसयाइं विक्खंभेणं पण्णत्ते ।
असुरेन्द्र असुरकुमारराज़ चमर के लोकपाल महाराज सोम का सोमप्रभ नामक उत्पातपर्वत दश सौ (१०००) योजन ऊंचा, दश सौ गव्यूति भूमि में गहरा और मूल में दश (१०००) योजन विस्तृत कहा गया है. (४८) । ४९ - चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो जमस्स महारण्णो जमप्पभे उप्पातपव्वते एवं चेव ।
असुरेन्द्र असुरकुमारराज़ चमर के लोकपाल यम महाराज का यमप्रभ नामक उत्पातपर्वत सोम के उत्पातपर्वत के समान ही ऊंचा, गहरा और विस्तार वाला कहा गया है (४९) ।
५०- • एवं वरुणस्सवि ।
इसी प्रकार वरुण लोकपाल का उत्पातपर्वत भी जानना चाहिए (५०) ।
५१
एवं वेसमणस्सवि ।
इसी प्रकार वैश्रमण लोकपाल का उत्पातपर्वत भी जानना चाहिए (५१) ।
५२. बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो रुयगिंदे उप्पातपव्वते मूले दस बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पण्णत्ते ।
वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि का रुचकेन्द्र नामक उत्पातपर्वत मूल में दश सौ बाईस (१०२२) योजन विस्तृत कहा गया है (५२) ।
५३ – बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो सोमस्स एवं चेव, जधा चमरस्स लोकपालाणं तं चेव बलिस्सवि ।
वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि के लोकपाल महाराज सोम, यम, वैश्रमण और वरुण के स्व-स्व नामवाले उत्पातपर्वतों की ऊंचाई एक-एक हजार योजन, गहराई एक-एक हजार गव्यूति और मूल भाग का विस्तार एकएक हजार योजन कहा गया है (५३) ।
५४— धरणस्स णं णागकुमारिंदस्स णागकुमाररण्णो धरणप्पभे उप्पातपव्वते दस जोयणसयाई उड्डुं उच्चत्तेणं, दस गाउयसताई उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसताइं विक्खंभेणं ।