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सप्तम स्थान
४. साधुओं की पूजा न होने से।
५. गुरुजनों के प्रति लोगों का असद् व्यवहार होने से।
६. मन में दुःख या उद्वेग होने से ।
७. वचन-व्यवहार सम्बन्धी दुःख से (६९) ।
सुषमा - लक्षण - सूत्र
- सत्तहिं ठाणेहिं ओगाढं सुसमं जाणेज्जा, तं जहा— अकाले ण वरिसइ, काले वरिसइ, असाधू ण पुज्जंति, साधू पुज्जंति, गुरूहिं जणो सम्मं पडिवण्णो, मणोसुहता, वसुहता ।
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सात लक्षणों से सुषमा काल का आना या प्रकर्षता को प्राप्त होना जाना जाता है, जैसे—
१. अकाल में वर्षा नहीं होने से ।
२. समय पर वर्षा होने से ।
३. असाधुओं की पूजा नहीं होने से ।
४. साधुओं की पूजा होने से।
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५. गुरुजनों के प्रति लोगों का सद्व्यवहार होने से।
६.. मन में सुख का संचार होने से।
७. वचन - व्यवहार में सद् भाव प्रकट होने से (७०) ।
जीव-सूत्र
७१— सत्तविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा—णेरइया, तिरिक्खजोणिया, तिरिक्खजोणिणीओ, मणुस्सा, मणुस्सीओ, देवा, देवीओ।
संसार - समापन्नक जीव सात प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. नैरयिक, २. तिर्यग्योनिक, ३. तिर्यंचनी, ४. मनुष्य, ५. मनुष्यनी, ६. देव, ७. देवी (७१)।
आयुर्भेद-सूत्र
७२ – सत्तविधे आउभेदे पण्णत्ते, तं जहा
संग्रहणी - गाथा
अज्झवसाण- णिमित्ते, आहारे वेयणा पराघाते । फासे आणापाणू सत्तविधं भिज्जए आउं ॥ १॥
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आयुर्भेद (अकाल मरण) के सात कारण कहे गये हैं, जैसे—१. राग, द्वेष, भय आदि भावों की तीव्रता से ।
२. शस्त्राघात आदि के निमित्त से।
३. आहार की हीनाधिकता या निरोध से ।
४. ज्वर, आतंक, रोग आदि की तीव्र वेदना से ।