________________
६२९
अष्टम स्थान
६२९ आभ्यन्तर पुष्करार्ध चक्रवाल विष्कम्भ से आठ लाख योजन कहा गया है (५९)। ६०- एवं बाहिरपुक्खरद्धेवि।
इसी प्रकार बाह्य पुष्करार्ध भी चक्रवाल विष्कम्भ से आठ लाख योजन विस्तृत कहा गया है। काकणिरत्न-सूत्र
६१- एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स अट्ठसोवण्णिए काकणिरयणे छत्तले दुवालसंसिए अट्ठकण्णिए अधिकरणिसंठिते।
प्रत्येक चातुरन्त चक्रवर्ती राजा के आठ सुवर्ण जितना भारी काकिणी रत्न होता है । वह छह तल, बारह कोण, आठ कर्णिका वाला और अहरन के संस्थान वाला होता है (६१)।
विवेचन— 'सुवर्ण' प्राचीन काल का सोने का सिक्का है, जो उस समय ८० गुंजा-प्रमाण होता था। काकिणी रत्न का प्रमाण चक्रवर्ती के अंगुल से चार अंगुल होता है। मागध-योजन-सूत्र
६२- मागधस्स णं जोयणस्स अट्ठ धणुसहस्साई णिधत्ते पण्णत्ते।
मगध देश के योजन का प्रमाण आठ हजार धनुष कहा गया है (६२)। जम्बूद्वीप-सूत्र
६३– जंबू णं सुदंसणा अट्ठ जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं, सातिरेगाइं अट्ठ जोयणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ता।
सुदर्शन जम्बू वृक्ष आठ योजन ऊँचा, बहुमध्यप्रदेश भाग में आठ योजन चौड़ा और सर्व परिमाण में कुछ अधिक आठ योजन कहा गया है (६३)।
६४ - कूडसामली णं अट्ठ जोयणाई एवं चेव। कूट शाल्मली वृक्ष भी पूर्वोक्त प्रमाण वाला जानना चाहिए (६४) । ६५– तिमिसगुहा णं अट्ठ जोयणाई उडे उच्चत्तेणं। तमिस्र गुफा आठ योजन ऊँची है (६५)। ६६- खंडप्पवातगुहा णं अट्ठ (जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं)। खण्डप्रपात गुफा आठ योजन ऊँची है (६६)।
६७- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महाणदीय उभतो कूले अट्ठ वक्खारपव्वया पण्णत्ता, तं जहा—चित्तकूडे, पम्हकूडे, णलिणकूडे, एगसेले, तिकूडे, वेसमणकूडे, अंजणे, मायंजणे।