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दशम स्थान
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१०. ब्रह्मचर्यवास (ब्रह्मचर्यपूर्वक गुरुजनों के पास रहना) (१६)। वैयावृत्त्य-सूत्र
१७– दसविधे वेयावच्चे पण्णत्ते, तं जहा—आयरियवेयावच्चे, उवज्झायवेयावच्चे, थेरवेयावच्चे, तवस्सिवेयावच्चे, गिलाणवेयावच्चे, सेहवेयावच्चे, कुलवेयावच्चे, गणवेयावच्चे, संघवेयावच्चे, साहम्मियवेयावच्चे।
वैयावृत्त्य दश प्रकार का कहा गया है, जैसे१. आचार्य का वैयावृत्त्य, २. उपाध्याय का वैयावृत्य, ३. स्थविर का वैयावृत्त्य, ४. तपस्वी का वैयावृत्त्य, ५. ग्लान का वैयावृत्त्य, ६. शैक्ष का वैयावृत्त्य, ७. कुल का वैयावृत्त्य, ८. गण का वैयावृत्त्य,
९. संघ का वैयावृत्त्य, १०. साधर्मिक का वैयावृत्त्य (१७)। परिणाम-सूत्र
१८- दसविधे जीवपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा गतिपरिणामे, इंदियपरिणामे, कसायपरिणामे, लेसापरिणामे, जोगपरिणामे, उवओगपरिणामे, णाणपरिणामे, दंसणपरिणामे, चरित्तपरिणामे, वेयपरिणामे।
जीव का परिणाम दश प्रकार का कहा गया है, जैसे१. गति-परिणाम, २. इन्द्रिय-परिणाम, ३. कषाय-परिणाम, ४. लेश्या-परिणाम, ५. योग-परिणाम, ६. उपयोग-परिणाम, ७. ज्ञान-परिणाम, ८. दर्शन-परिणाम, ९. चारित्र-परिणाम, १०. वेद-परिणाम (१८)।
१९- दसविधे अजीवपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा—बंधणपरिणामे, गतिपरिणामे, संठाणपरिणामे, भेदपरिणामे, वण्णपरिणामे, रसपरिणामे, गंधपरिणामे, फासपरिणामे, अगुरुलहुपरिणामे, सद्दपरिणामे।
अजीव का परिणाम दश प्रकार का कहा गया है, जैसे१. बन्धन-परिणाम, २. गति-परिणाम, ३. संस्थान-परिणाम, ४. भेद-परिणाम, ५. वर्ण-परिणाम,
६. रस-परिणाम,७. गन्ध-परिणाम, ८. स्पर्श-परिणाम, ९. अगुरु-लघु-परिणाम, १०. शब्द-परिणाम (१९)। अस्वाध्याय-सूत्र
२०- दसविधे अंतलिक्खए असज्झाइए पण्णत्ते, तं जहा—उक्कावाते, दिसिदाघे, गजिते, विजुते, णिग्याते, जुवए, जक्खालित्ते, धूमिया, महिया, रयुग्घाते।
अन्तरिक्ष (आकाश) सम्बन्धी अस्वाध्यायकाल दश प्रकार का कहा गया है, जैसे१. उल्कापात-अस्वाध्याय— बिजली गिरने या तारा टूटने पर स्वाध्याय नहीं करना। २. दिग्दाह— दिशाओं को जलती हुई देखने पर स्वाध्याय नहीं करना।