Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
६८२
स्थानाङ्गसूत्रम्
असमाधि दश प्रकार की कही गई है, जैसे१. प्राणातिपात-अविरमण, २. मृषावाद-अविरमण, ३. अदत्तादान-अविरमण, ४. मैथुन-अविरमण, ५. परिग्रह-अविरमण, ६. ईर्या-असमिति (गमन की असावधानी), ७. भाषा-असमिति (बोलने की असावधानी) ८. एषणा-असमिति (गोचरी की असावधानी) ९. आदान-भाण्ड-अमत्र-निक्षेप की असमिति,
१०. उच्चार-प्रस्रवण-श्लेष्म-सिंघाण-जल्ल-परिष्ठापना-असमिति (१४)। प्रव्रज्या-सूत्र
१५- दसविधा पव्वजा पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथा
छंदा रोसा परिजुण्णा, सुविणा पडिस्सुता चेव । सारणिया रोगिणिया, अणाढिता देवसण्णत्ती ॥१॥
वच्छाणुबंधिया। प्रव्रज्या दश प्रकार की कही गई है, जैसे१. छन्दाप्रव्रज्या- अपनी या दूसरों की इच्छा से ली जाने वाली दीक्षा। २. रोषाप्रव्रज्या- रोष से ली जाने वाली प्रव्रज्या। ३. परिघूनाप्रव्रज्या— दरिद्रता से ली जाने वाली दीक्षा। ४. स्वप्नाप्रव्रज्या- स्वप्न देखने से ली जाने वाली, या स्वप्न में ली जाने वाली दीक्षा। ५. प्रतिश्रुताप्रव्रज्या- पहले की हुई प्रतिज्ञा के कारण ली जाने वाली दीक्षा। ६. स्मारणिकाप्रव्रज्या- पूर्व जन्मों का स्मरण होने पर ली जाने वाली दीक्षा। ७. रोगिणिकाप्रव्रज्या- रोग के हो जाने पर ली जाने वाली दीक्षा। ८. अनादृताप्रव्रज्या- अनादर होने पर ली जाने वाली दीक्षा। ९. देवसंज्ञप्तिप्रव्रज्या— देव के द्वारा प्रतिबुद्ध करने पर ली जाने वाली दीक्षा।
१०. वत्सानुबन्धिकाप्रव्रज्या- दीक्षित होते हुए पुत्र के निमित्त से ली जाने वाली दीक्षा (१५)। श्रमणधर्म-सूत्र
१६– दसविधे समणधम्मे पण्णत्ते, तं जहा खंती, मुत्ती, अजवे, मद्दवे, लाघवे, सच्चे, संजमे, तवे, चियाए, बंभचेरवासे।
श्रमण-धर्म दश प्रकार का कहा गया है, जैसे१. क्षान्ति (क्षमा धारण करना),
२. मुक्ति (लोभ नहीं करना), ३. आर्जव (मायाचार नहीं करना),
४. मार्दव (अहंकार नहीं करना); ५. लाघव (गौरव नहीं रखना),
६. सत्य (सत्य वचन बोलना), ७. संयम धारण करना,
८. तपश्चरण करना, ९. त्याग (साम्भोगिक साधुओं को भोजनादि देना),