Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
संग्रहणी-गाथा
पउमावती य गोरी, गंधारी लक्खणा सुसीमा य ।
जंबवती सच्चभामा, रुप्पिणी अग्गमहिसीओ ॥१॥ वासुदेव कृष्ण की आठ अग्रमहिषियाँ अर्हत् अरिष्टनेमि के पास मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित होकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिवृत्त और समस्त दुःखों से रहित हुईं, जैसे
१. पद्मावती, २. गोरी, ३. गान्धारी, ४. लक्ष्मणा, ५. सुसीमा, ६. जाम्बवती, ७. सत्यभामा, ८. रुक्मिणी (५३)। पूर्ववस्तु-सूत्र
५४- वीरियपुव्वस्स णं अट्ठ वत्थू अट्ठ चूलवत्थू पण्णत्ता।
वीर्यप्रवाद पूर्व के आठ वस्तु (मूल अध्ययन) और आठ चूलिका-वस्तु कहे गये हैं (५४)। गति-सूत्र
५५- अटु गतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—णिरयगती, तिरियगती, (मणुयगती, देवगती), सिद्धिगती, गुरुगती, पणोल्लणगती, पब्भारगती।
गतियाँ आठ कही गई हैं, जैसे१. नरकगति, २. तिर्यग्गति, ३. मनुष्यगति, ४. देवगति, ५. सिद्धगति, ६. गुरुगति, ७. प्रणोदनगति, ८. प्राग्-भारगति (५५)।
विवेचन– परमाणु आदि की स्वाभाविक गति को गुरुगति कहा जाता है। दूसरे की प्रेरणा से जो गति होती है वह प्रणोदनगति कहलाती है। जो दूसरे द्रव्यों से आक्रान्त होने पर गति होती है, उसे प्राग्भारगति कहते हैं। जैसेनाव में भरे भार से उसकी नीचे की ओर होने वाली गति। शेष गतियाँ प्रसिद्ध हैं। द्वीप-समुद्र-सूत्र
५६- गंगा-सिंधु-रत्त-रत्तवतिदेवीणं दीवा अट्ठ-अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता।
गंगा, सिन्धु, रक्ता और रक्तवती नदियों की अधिष्ठात्री देवियों के द्वीप आठ-आठ योजन लम्बे-चौड़े कहे गये हैं (५६)।
५७– उक्कामुह-मेहमुह-विज्जुमुह-विजुदंतदीवा णं दीवा अट्ठ-अट्ठ जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता।
उल्कामुख, मेघमुख, विद्युन्मुख और विद्युद्दन्त द्वीप आठ-आठ सौ योजन लम्बे-चौड़े कहे गये हैं (५७)। ५८- कालोदे णं समुद्दे अट्ठ जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं पण्णत्ते। कालोद समुद्र चक्रवाल विष्कम्भ (गोलाई की अपेक्षा) से आठ लाख योजन विस्तृत कहा गया है (५८)। ५९- अब्भंतरपुक्खरद्धे णं अट्ठ जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं पण्णत्ते।