Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम स्थान
६३७
महत्तरिका-सूत्र
९९- अट्ठ अहेलोगवत्थव्वाओ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहासंग्रहणी-गाथा
भोगंकरा भोगवती, सुभोगा भोगमालिणी ।
सुवच्छा वच्छमित्ता य, वारिसेणा बलाहगा ॥१॥ अधोलोक में रहने वाली आठ दिशाकुमारियों की महत्तरिकाएं कही गई हैं, जैसे१. भोगंकरा, २. भोगवती, ३. सुभोगा, ४. भोगमालिनी, ५. सुवत्सा, ६. वत्समित्रा, ७. वारिषेणा, ८. बलाहका (९९)। १००- अट्ठ उड्लोगवत्थव्वाओ दिसाकुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—
मेघंकरा मेघवती, सुमेघा मेघमालिणी ।।
तोयधारा विचित्ता य, पुष्फमाला अणिंदिता ॥१॥ ऊर्ध्वलोक में रहने वाली आठ दिशाकुमारी-महत्तरिकाएं कही गई हैं, जैसे१. मेघंकरा, २. मेघवती, ३. सुमेघा, ४. मेघमालिनी, ५. तोयधारा, ६. विचित्रा, ७. पुष्पमाला,
८.अनिन्दिता (१००)। कल्प-सूत्र
१०१-- अट्ट कप्पा तिरिय-मिस्सोववण्णगा पण्णत्ता, तं जहा सोहम्मे, (ईसाणे, सणंकुमारे, माहिंदे, बंभलोगे, लंतए महासुक्के), सहस्सारे।
तिर्यग्-मिश्रोपन्नक (तिर्यंच और मनुष्य दोनों के उत्पन्न होने के योग्य) कल्प आठ कहे गये हैं, जैसे१. सौधर्म, २. ईशान, ३. सनत्कुमार, ४. माहेन्द्र, ५. ब्रह्मलोक, ६. लान्तक, ७. महाशुक्र, ८. सहस्रार (१०१)।
१०२- एतेसु णं अट्ठसु कप्पेसु अट्ठ इंदा पण्णत्ता, तं जहा—सक्के, (ईसाणे, सणंकुमारे, माहिंदे, बंभे, लंतए, महासुक्के), सहस्सारे।
इन आठों कल्पों में आठ इन्द्र कहे गये हैं, जैसे१. शक्र, २. ईशान, ३. सनत्कुमार, ४. माहेन्द्र, ५. ब्रह्म, ६. लान्तक,७. महाशुक्र, ८. सहस्रार (१०२)।
१०३- एतेसि णं अट्ठण्हं इंदाणं अट्ठ परियाणिया विमाणा पण्णत्ता, तं जहा—पालए, पुष्फए, सोमणसे, सिरिवच्छे, णंदियावत्ते, कामकमे, पीतिमणे, मणोरमे।
इन आठों इन्द्रों के आठ पारियानिक (यात्रा में काम आने वाले) विमान कहे गये हैं, जैसे१. पालक, २. पुष्पक, ३. सौमनस, ४. श्रीवत्स, ५. नंद्यावर्त, ६. कामक्रम, ७. प्रीतिमन, ८. मनोरम (१०३)।