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नवम स्थान
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प्राप्ति माणवक महानिधि से होती है ॥९॥ ९. नृत्यविधि, नाटकविधि, चार प्रकार के काव्यों तथा सभी प्रकार के वाद्यों की प्राप्ति शंख महानिधि से
होती है ॥१०॥ विवेचन- चक्रवर्ती के नौ निधानों के नायक नौ देव हैं। यहां पर निधि और निधाननायक देव के अभेद की विवक्षा है। अतएव जिस निधान (निधि) से जिन वस्तुओं की प्राप्ति कही गई है, वह निधान-नायक उस-उस देव से समझना चाहिए। नौ निधियों में चक्रवर्ती के उपयोग की सभी वस्तुओं का समावेश हो जाता है।
प्रत्येक महानिधि आठ-आठ चक्रों पर अवस्थित है। वे आठ योजन ऊंची, नौ योजन चौड़ी, बारह योजन लम्बी और मंजूषा के आकार वाली होती हैं। ये सभी महानिधियां गंगा के मुहाने पर अवस्थित रहती हैं ॥११॥ उन निधियों के कपाट वैडूर्यरत्नमय और सुवर्णमय होते हैं। उनमें अनेक प्रकार के रत्न जड़े होते हैं । उन पर चन्द्र, सूर्य और चक्र के आकार के चिह्न होते हैं वे सभी कपाट समान होते हैं, उनके द्वार के मुखभाग खम्भे के समान गोल और लम्बी द्वार-शाखएं होती हैं ॥१२॥ ये सभी निधियाँ एक-एक पल्योपम की स्थिति वाले देवों से अधिष्ठित रहती हैं। उन पर निधियों के नाम वाले देव निवास करते हैं। ये निधियाँ खरीदी या बेची नहीं जा सकती हैं और उन पर सदा देवों का आधिपत्य रहता है ॥ १३॥ ये नवों निधियां विपुल धन और रत्नों के संचय से समृद्ध रहती हैं और ये चक्रवर्तियों के वश में रहती
हैं ॥१४॥ . विकृति-सूत्र
२३–णव विगतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा खीरं, दधिं, णवणीतं, सप्पिं, तेलं, गुलो, महुं, मजं, मंसं।
नौ विकृतियाँ कही गई हैं, जैसे
१. दूध, २. दही, ३. नवनीत (मक्खन), ४. घी, ५. तेल, ६. गुड़,७. मधु, ८. मद्य, ९. मांस (२३)। बोन्दी-(शरीर)-सूत्र
२४- णव-सोत-परिस्सवा बोंदी पण्णत्ता, तं जहा—दो सोत्ता, दो णेत्ता, दो घाणा, मुहं,
दि० शास्त्रों में भी चक्रवर्ती की उक्त नौ निधियों का वर्णन है, केवल नामों के क्रमों का अन्तर है। कार्यों के साथ उनके नाम इस प्रकार हैं१. कालनिधि- द्रव्य-प्रदात्री।
२. महाकालनिधि- भाजन, पात्र-प्रदात्री। ३. पाण्डुनिधि- धान्य-प्रदात्री।
४. माणवनिधि- आयुध-प्रदात्री। ५. शंखनिधि-वादित्र-प्रदात्री।
६. पद्मनिधि- वस्त्र-प्रदात्री। ७. नैसर्पनिधि- भवन-प्रदात्री।
८. पिंगलनिधि- आभरण-प्रदात्री। ९. नानारत्ननिधि- नाना प्रकार के रत्नों की प्रदात्री। -तिलोयपण्णत्ती ४, गा० १३८४-१३८६