Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
के स्वभाव से जीव मनुष्य या तिर्यंच गतिनामकर्म का बन्ध करता है, देव या नरक गतिनामकर्म का नहीं ।
३. स्थिति - परिणाम — भव सम्बन्धी अन्तर्मुहूर्त से लेकर तेतीस सागरोपम तक की स्थिति का यथायोग्य बन्ध कराने वाला परिणाम ।
४. स्थितिबन्धन-परिणाम — पूर्व भय की आयु के परिणाम से अगले भव की नियत आयुस्थिति का बन्ध कराने वाला परिणाम, जैसे—–— तिर्यगायु के स्वभाव से देवायु का उत्कृष्ट बन्ध अठारह सागरोपम होगा, इससे अधिक नहीं।
५. ऊर्ध्वगौरव-परिणाम जीव का ऊर्ध्वदिशा में गमन कराने वाला परिणाम । ६. अधोगौरव-परिणाम — जीव का अधोदिशा में गमन कराने वाला परिणाम ।
७. तिर्यग्गौरव - परिणाम — जीव का तिर्यग्दिशा में गमन कराने वाला परिणाम ।
८. दीर्घगौरव - परिणाम —— जीव का लोक के अन्त तक गमन कराने वाला परिणाम । ९. ह्रस्वगौरव - परिणाम — जीव का अल्प गमन कराने वाला परिणाम (४०) ।
प्रतिमा - सूत्र
४१ - णवणवमिया णं भिक्खुपडिमा एगासीतीए रातिंदिएहिं चउहिं य पंचुत्तरेहिं भिक्खातेहिं अहासुतं (अहाअत्थं अहातच्चं अहामग्गं अहाकप्पं सम्मं कारणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया) आराहिया यावि भवति ।
नव-नवमिका भिक्षुप्रतिमा ८१ दिन-रात तथा ४०५ भिक्षादत्तियों के द्वारा यथासूत्र, यथाअर्थ, यथातत्त्व, यथाकल्प तथा सम्यक् प्रकार काय से आचरित, पालित, शोधित, पूरित, कीर्तित और आराधित की जाती है ( ४१ ) । प्रायश्चित्त-सूत्र
४२ — णवविधे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा— आलोयणारिहे ( पडिक्कमणारिहे, तदुभयारिहे, विवेगारिहे विउस्सग्गारिहे, तवारिहे, छेयारिहे), मूलारिहे, अणवट्टप्पारिहे।
प्रायश्चित्त नौ प्रकार का कहा गया है, जैसे—
१. आलोचना के योग्य, २. प्रतिक्रमण के योग्य, ३. तदुभय— आलोचना और प्रतिक्रमण दोनों के योग्य, ४. विवेक के योग्य, ५. व्युत्सर्ग के योग्य, ६. तप के योग्य, ७. छेद के योग्य, ८. मूल के योग्य, ९. अनवस्थाप्य के योग्य (४२) ।
कूट - सूत्र
४३—– जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं भरहे दीहवेतड्डे णव कूडा पण्णत्ता, तं
जहा
संग्रहणी भाषा
सिद्धे भरहे खंडग, माणी वेयड्डू पुण्ण तिमिसगुहा ।
भरहे वेसमणे या, भरहे कूडाण णामाई ॥ १ ॥