Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 737
________________ ६७० स्थानाङ्गसूत्रम् आर्यो! जैसे मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए तीन प्रकार के दण्डों का निरूपण किया है, जैसे—मनोदण्ड, वचनदण्ड और कायदण्ड। इसी प्रकर अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए तीन प्रकार के दण्डों का निरूपण करेंगे। जैसे—मनोदण्ड, वचनदण्ड और कायदण्ड। आर्यो! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे चार कषायों का निरूपण किया है, यथा- क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषाय। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए चार प्रकार के कषायों का निरूपण करेंगे। जैसे—क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषाय। आर्यो! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे पांच कामगुणों का निरूपण किया है, जैसे शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श। इसी प्रकर अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पांच कामगुणों का निरूपण करेंगे, जैसे शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श। ___आर्यो! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे छह जीवनिकायों का निरूपण किया है, यथा-पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमणनिर्ग्रन्थों के लिए छह जीवनिकायों का निरूपण करेंगे, जैसे—पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक। ___ आर्यो! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे सात भयस्थानों का निरूपण किया है, जैसे—इहलोकभय, परलोकभय, आदानभय, अकस्माद्भय, वेदनाभय, मरणभय और अश्लोकभय। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमणनिर्ग्रन्थों के लिए सात भयस्थानों का निरूपण करेंगे, जैसे—इहलोकभय, परलोकभय, आदानभय, अकस्माद्भय, वेदनाभय, मरणभय और अश्लोकभय। . आर्यो ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के जिए जैसे आठ मदस्थानों का, नौ ब्रह्मचर्य गुप्तियों का, दशप्रकार के श्रमणधर्मों का यावत् तेतीस आशातनाओं का निरूपण किया है, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए आठ मदस्थानों का, नौ ब्रह्मचर्यगुप्तियों का, दश प्रकार के श्रमण-धर्मों का यावत् तेतीस आशातनाओं का निरूपण करेंगे। आर्यो! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे नग्नभाव, मुण्डभाव, स्नान-त्याग, दन्त-धावन-त्याग, छत्र-धारणत्याग, उपानह (जूता) त्याग, भूमिशय्या, फलकशय्या, काष्ठशय्या, केशलोंच, ब्रह्मचर्यवास और परगृहप्रवेश कर लब्ध-अपलब्ध वृत्ति (आदर-अनादरपूर्वक प्राप्त भिक्षा) का निरूपण किया है, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए नग्नभाव, मुण्डभाव, स्नानत्याग, भूमिशय्या फलकशय्या, काष्ठशय्या, केशलोंच, ब्रह्मचर्यवास और परगृहप्रवेश कर लब्ध-अलब्ध वृत्ति का निरूपण करेंगे। आर्यो! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे अधाकर्मिक, औद्देशिक, मिश्रजात, अध्यवपूरक, पूतिक, क्रीत, प्रामित्य, आछेद्य, अनिसृष्ट, अभ्याहृत, कान्तारभक्त, दुर्भिक्षभक्त, ग्लानभक्त, वार्दलिकाभक्त, प्राघूर्णिकभक्त, मूलभोजन, कन्दभोजन, फलभोजन, बीजभोजन और हरितभोजन का निषेध किया है, उसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमणनिर्ग्रन्थों के लिए आधाकर्मिक, औद्देशिक, मिश्रजात, अध्यवपूरक, पूतिक, क्रीत, प्रामित्य, आछेद्य, अनिसृष्टिक, अभ्याहृत, कान्तारभक्त, दुर्भिक्षभक्त, ग्लानभक्त, वादलिकाभक्त, प्राघूर्णिकभक्त, मूलभोजन, कन्दभोजन, फलभोजन, बीजभोजन और हरितभोजन का निषेध करेंगे।

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