Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नवम स्थान
आदि एक दूसरे को इस प्रकार सम्बोधित करेंगे और इस प्रकार से कहेंगे देवानुप्रियो ! महर्धिक, महाद्युतिसम्पन्न, महानुभाव, महायशस्वी, महाबली और महान् सौख्य वाले पूर्णभद्र और माणिभद्र नामक दो देव यतः राजा महापद्म का सैनिककर्म कर रहे हैं, अतः हमारे महापद्म राजा का दूसरा नाम 'देवसेन' होना चाहिए। तब से उस महापद्म राजा का दूसरा नाम देवसेन होगा।
तब उस देवसेन राजा के अन्य किसी समय निर्मल शंखतल के समान श्वेत, चार दांत वाला हस्तिरत्न उत्पन्न होगा। तब वह देवसेन राजा निर्मल शंखतल के समान श्वेत चार दांत वाले हस्तिरत्न पर आरूढ होकर शतद्वार नगर के बीचोंबीच होते हुए बारबार जायगा और आयगा।
तब उस शतद्वार नगर के अनेक राजा, ईश्वर, तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह आदि परस्पर एक दूसरे को सम्बोधित करेंगे और इसप्रकार से कहेंगे—देवानुप्रियो! हमारे राजा देवसेन के निर्मल शंखतल के समान श्वेत, चार दांत वाला हस्तिरत्न है, अत: देवानुप्रियो! हमारे राजा का तीसरा नाम 'विमलवाहन' होना चाहिए। तब से उस देवसेन राजा का तीसरा नाम 'विमलवाहन' होगा।
तब वह विमलवाहन राजा तीस वर्ष तक गृहवास में रहकर, माता-पिता के देवगति को प्राप्त होने पर, गुरुजनों और महत्तर पुरुषों के द्वारा अनुज्ञा लेकर शरद् ऋतु में जीतकल्पिक, लोकान्तिक देवों के द्वारा अनुत्तर मोक्षमार्ग के लिए संबुद्ध होंगे। तब वे इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मन:प्रिय, उदार, कल्याण, शिव, धन्य, मांगलिक श्रीकार-सहित वाणी से अभिनन्दित और संस्तुत होते हुए नगर के बाहर 'सुभूमिभाग' नाम के उद्यान में एक देवदूष्य लेकर मुण्डित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित होंगे।
वे भगवान् जिस दिन मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित होंगे, उसी दिन वे स्वयं ही इस प्रकार का अभिग्रह ग्रहण करेंगे
देवकृत, मनुष्यकृत या तिर्यग्योनिक जिस किसी प्रकार के भी उपसर्ग उत्पन्न होंगे, उन सब को मैं भली भांति से सहन करूंगा, अहीन भाव से दृढ़ता के साथ सहन करूंगा, तितिक्षा करूंगा और अविचल भाव से सहूंगा।
तब वे भगवान् (महापद्म) अनगार ईर्यासमिति से भाषासमिति से संयुक्त होकर जैसे वर्धमान स्वामी (तपश्चरण में संलग्न हुए थे, उन्हीं के समान) सर्व अनगार धर्म का पालन करते हुए व्यापाररहित व्युत्सृष्ट योग से युक्त होंगे।
उन भगवान् महापद्म को इस प्रकार के विहार से विचरण करते हुए बारह वर्ष और तेरह पक्ष बीत जाने पर, तेरहवें वर्ष के अन्तराल में वर्तमान होने पर अनुत्तर ज्ञान के द्वारा भावना अध्ययन के कथनानुसार केवल वर ज्ञान-दर्शन उत्पन्न होंगे। तब वे जिन, केवली, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी होकर नारक आदि सर्व लोकों के पर्यायों को जानेंगेदेखेंगे। वे भावना-सहित पांच महाव्रतों की, छह जीवनिकायों की और धर्म की देशना करते हुए विहार करेंगे।
___ आर्यो! जैसे मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए एक आरम्भ-स्थान का निरूपण किया है, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए एक आरम्भ स्थान का निरूपण करेंगे।
___ आर्यो! मैंने जैसे श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए दो प्रकार के बन्धनों का निरूपण किया है, जैसे—प्रेयोबन्धन और द्वेषबन्धन। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए दो प्रकार के बन्धन कहेंगे। जैसे—प्रेयोबन्धन और द्वेषबन्धन।