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नवम स्थान
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(रिष्ट देव स्वामी के रूप में नौ हैं और उनके नौ सौ देवों का परिवार कहा गया है (३७)।)
३८–णव गेवेज-विमाण-पत्थडा पण्णत्ता, तं जहा हेट्ठिम-हेट्ठिम-गेविज-विमाण-पत्थडे, हेट्ठिम-मज्झिम-गेविज-विमाण-पत्थडे, हेट्ठिम-उवरिम-गेविज-विमाण-पत्थडे, मज्झिम-हेट्ठिमगेविज-विमाण-पत्थडे, मज्झिम-मझिम-गेविज-विमाण-पत्थडे, मझिम-उवरिम-गेविज-विमाण-पत्थडे, उवरिम-हेट्ठिम-गेविज-विमाण-पत्थडे, उवरिम-मज्झिम-गेविज-विमाण-पत्थडे, उवरिम-उवरिमगेविज-विमाण-पत्थडे।
ग्रैवेयक विमान के प्रस्तट (पटल) नौ कहे गये हैं, जैसे१. अधस्तन-त्रिक का अधस्तन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट। २. अधस्तन-त्रिक का मध्यम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट। ३. अधस्तन त्रिक का उपरितन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट। ४. मध्यम त्रिक का अधस्तन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट। ५. मध्यम त्रिक का मध्यम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट। ६. मध्यम त्रिक का उपरितन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट। ७. उपरितन त्रिक का अधस्तन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट। ८. उपरितन त्रिक का मध्यम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट। ९. उपरितन त्रिक का उपरितन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट (३८)।
३९- एतेसि णं णवण्हं गेविज-विमाण-पत्थडाणं णव णामधिज्जा पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथा
भद्दे सुभद्दे सुजाते, सोमणसे पियदरिसणे ।
सुदंसणे अमोहे य, सुप्पबुद्धे जसोधरे ॥ १॥ इन ग्रैंवेयक विमानों के नवों प्रस्तटों के नौ नाम कहे गये हैं, जैसे१. भद्र, २. सुभद्र, ३. सुजात, ४. सौमनस, ५. प्रियदर्शन, ६. सुदर्शन, ७. अमोह, ८. सुप्रबुद्ध,
९. यशोधर (३९)। आयुपरिणाम-सूत्र
४०- णवविहे आउपरिणामे पण्णत्ते, तं जहातिपरिणामे, गतिबंधणपरिणामे, ठितीपरिणामे, ठितीबंधणपरिणामे, उडुंगारवपरिणामे, अहेगारवपरिणामे, तिरियंगारवपरिणामे, दीहंगारवपरिणामे, रहस्संगारवपरिणामे।
आयुःपरिणाम नौ प्रकार का कहा गया है, जैसे१. गति-परिणाम- जीव को देवा नियत गति प्राप्त कराने वाला आयु का स्वभाव। २. गतिबन्धन-परिणामप्रतिनियत गति नामकर्म का बन्ध कराने वाला आयु का स्वभाव। जैसे–नारकायु