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नवम स्थान
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९. मिथ्याप्रवचन- कुतीर्थिक मिथ्यात्वियों के शास्त्र (२७)। नैपुणिक-सूत्र २८–णव उणिया वत्थू पण्णत्ता, तं जहा
संखाणे णिमित्ते काइए पोराणे पारिहथिए ।
परपंडिते वाई य, भूतिकम्मे तिगिच्छिए ॥१॥ नैपुणिक वस्तु नौ कही गई हैं। अर्थात् किसी वस्तु में निपुणता प्राप्त करने वाले पुरुष नौ प्रकार के होते
१. संख्यान-नैपुणिक- गणित शास्त्र का विशेषज्ञ । २. निमित्त-नैपुणिक- निमित्त शास्त्र का विशेषज्ञ । ३. काय-नैपुणिक- शरीर की इडा, पिंगला आदि नाड़ियों का विशेषज्ञ । ४. पुराण-नैपुणिक- प्राचीन इतिहास का विशेषज्ञ । ५. पारिहस्तिक-नैपुणिक- प्रकृति से ही समस्त कार्यों में कुशल । ६. परपंडित- अनेक शास्त्रों को जानने वाला। ७. वादी- शास्त्रार्थ या वाद-विवाद करने में कुशल। ८. भूतिकर्म-नैपुणिक- भस्म लेप करके और डोरा आदि बाँध कर चिकित्सा करने में कुशल। ९. चिकित्सा-नैपुणिक- शारीरिक चिकित्सा करने में कुशल (२८)।
विवेचन- आ० अभयदेवसूरि ने उक्त नौ प्रकार के नैपुणिक पुरुषों की व्याख्या करने के पश्चात् सूत्र-पठित 'वत्थु' (वस्तु) पद के आधार पर अथवा कहकर अनुप्रवाद पूर्व के वस्तु नामक नौ अधिकारों को सूचित किया है, जिनके नाम भी ये ही हैं। गण-सूत्र
२९- समणस्स णं भगवतो महावीरस्स णव गणा हुत्था, तं जहा—गोदासगणे, उत्तर-बलिस्सहगणे, उद्देहगणे, चारणगणे, उद्दवाइयगणे, विस्सवाइयगणे, कामड्डियगणे, माणवगणे, कोडियगणे।
श्रमण भगवान् महावीर के नौ गण (एक-सी सामाचारी का पालन करने वाले और एक-सी वाचना करने वाले साधुओं के समुदाय) थे, जैसे
१. गोदासगण, २. उत्तरबलिस्सहगण, ३. उद्देहगण, ४. चारणगण, ५. उद्दकाइयगण, ६. विस्सवाइयगण,
७. कामर्धिकगण, ८. मानवगण, ९. कोटिकगण (२९)। भिक्षाशुद्धि-सूत्र
३०— समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णवकोडिपरिसुद्धे भिक्खे पण्णत्ते, तं जहा—ण हणइ, ण हणावइ, हणंतं णाणुजाणइ, ण पयइ, ण पयावेति, पयंतं णाणुजाणति, ण किणति, ण किणावेति, किणंतं णाणुजाणति।