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________________ नवम स्थान ६५७ ९. मिथ्याप्रवचन- कुतीर्थिक मिथ्यात्वियों के शास्त्र (२७)। नैपुणिक-सूत्र २८–णव उणिया वत्थू पण्णत्ता, तं जहा संखाणे णिमित्ते काइए पोराणे पारिहथिए । परपंडिते वाई य, भूतिकम्मे तिगिच्छिए ॥१॥ नैपुणिक वस्तु नौ कही गई हैं। अर्थात् किसी वस्तु में निपुणता प्राप्त करने वाले पुरुष नौ प्रकार के होते १. संख्यान-नैपुणिक- गणित शास्त्र का विशेषज्ञ । २. निमित्त-नैपुणिक- निमित्त शास्त्र का विशेषज्ञ । ३. काय-नैपुणिक- शरीर की इडा, पिंगला आदि नाड़ियों का विशेषज्ञ । ४. पुराण-नैपुणिक- प्राचीन इतिहास का विशेषज्ञ । ५. पारिहस्तिक-नैपुणिक- प्रकृति से ही समस्त कार्यों में कुशल । ६. परपंडित- अनेक शास्त्रों को जानने वाला। ७. वादी- शास्त्रार्थ या वाद-विवाद करने में कुशल। ८. भूतिकर्म-नैपुणिक- भस्म लेप करके और डोरा आदि बाँध कर चिकित्सा करने में कुशल। ९. चिकित्सा-नैपुणिक- शारीरिक चिकित्सा करने में कुशल (२८)। विवेचन- आ० अभयदेवसूरि ने उक्त नौ प्रकार के नैपुणिक पुरुषों की व्याख्या करने के पश्चात् सूत्र-पठित 'वत्थु' (वस्तु) पद के आधार पर अथवा कहकर अनुप्रवाद पूर्व के वस्तु नामक नौ अधिकारों को सूचित किया है, जिनके नाम भी ये ही हैं। गण-सूत्र २९- समणस्स णं भगवतो महावीरस्स णव गणा हुत्था, तं जहा—गोदासगणे, उत्तर-बलिस्सहगणे, उद्देहगणे, चारणगणे, उद्दवाइयगणे, विस्सवाइयगणे, कामड्डियगणे, माणवगणे, कोडियगणे। श्रमण भगवान् महावीर के नौ गण (एक-सी सामाचारी का पालन करने वाले और एक-सी वाचना करने वाले साधुओं के समुदाय) थे, जैसे १. गोदासगण, २. उत्तरबलिस्सहगण, ३. उद्देहगण, ४. चारणगण, ५. उद्दकाइयगण, ६. विस्सवाइयगण, ७. कामर्धिकगण, ८. मानवगण, ९. कोटिकगण (२९)। भिक्षाशुद्धि-सूत्र ३०— समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णवकोडिपरिसुद्धे भिक्खे पण्णत्ते, तं जहा—ण हणइ, ण हणावइ, हणंतं णाणुजाणइ, ण पयइ, ण पयावेति, पयंतं णाणुजाणति, ण किणति, ण किणावेति, किणंतं णाणुजाणति।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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