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स्थानाङ्गसूत्रम्
पोसए, पाऊ।
शरीर नौ स्रोतों से झरने वाला कहा गया है, जैसेदो कर्णस्रोत, दो नेत्रस्रोत, दो नाकस्रोत, एक मुखस्रोत, एक उपस्थस्रोत (मूत्रेन्द्रिय) और एक अपानस्रोत
(मलद्वार) (२४)। पुण्य-सूत्र
२५– णवविधे पुण्णे पण्णत्ते, तं जहा—अण्णपुण्णे, पाणपुण्णे, वत्थपुण्णे, लेणपुण्णे, सयणपुण्णे, मणपुण्णे, वइपुण्णे, कायपुण्णे, णमोक्कारपुण्णे।
नौ प्रकार का पुण्य कहा गया है, जैसे१. अन्नपुण्य, २. पानपुण्य, ३. वस्त्रपुण्य, ४. लयन-(भवन)-पुण्य, ५. शयनपुण्य, ६. मनपुण्य,
७. वचनपुण्य, ८. कायपुण्य, ९. नमस्कारपुण्य (२५)। पापायतन-सूत्र
२६- णव पावस्सायतणा पण्णत्ता, तं जहा-पाणातिवाते, मुसावाए, (अदिण्णादाणे, मेहुणे), परिग्गहे, कोहे, माणे, माया, लोभे।
पाप के आयतन (स्थान) नौ कहे गये हैं, जैसे१. प्राणातिपात, २. मृषावाद, ३. अदत्तादान, ४. मैथुन, ५. परिग्रह, ६. क्रोध, ७. मान, ८. माया,
९. लोभ (२६)। पापश्रुतप्रसंग-सूत्र
२७- णवविध पावसुयपसंगे पण्णत्ते, तं जहासंग्रहणी-गाथा
उप्पाते णिमित्ते मंते, आइक्खिए तिगिच्छिए ।
कला आवरणे अण्णाणे मिच्छापवयणे ति य ॥१॥ पापश्रुतप्रसंग (पाप के कारणभूत शास्त्र का विस्तार) नौ प्रकार का कहा गया है, जैसे१. उत्पातश्रुत- प्रकृति-विप्लव और राष्ट्र-विप्लव का सूचक शास्त्र। २. निमित्तश्रुत— भूत, वर्तमान और भविष्य के फल का प्रतिपादक शास्त्र। ३. मन्त्रश्रुत— मन्त्र-विद्या का प्रतिपादक शास्त्र। ४. आख्यायिकाश्रुत— परोक्ष बातों की प्रतिपादक मातंगविद्या का शास्त्र। ५. चिकित्साश्रुत— रोग-निवारक औषधियों का प्रतिपादक आयुर्वेद शास्त्र। ६. कलाश्रुत-स्त्री-पुरुषों की कलाओं का प्रतिपादक शास्त्र। ७. आवरणश्रुत— भवन-निर्माण की वास्तुविद्या का शास्त्र। ८. अज्ञानश्रुत— नृत्य, नाटक, संगीत आदि का शास्त्र।