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अष्टम स्थान
८. तिन्दुक गन्धर्वों का चैत्यवृक्ष है (११७) ।
ज्योतिष्क-सूत्र
११८ – इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिजाओ भूमिभागाओ अट्ठजोयणसते उड्डमबहाए सूरविमाणे चारं चरति ।
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इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसमरमणीय भूमिभाग से आठ सौ योजन की ऊंचाई पर सूर्यविमान भ्रमण करता है (११८) ।
११९ – अट्ठ णक्खत्ता चंदेणं सद्धिं पमद्दं जोगं जोएंति, तं जहा — कत्तिया, रोहिणी, पुणव्वसू, महा, चित्ता, विसाहा, अणुराधा, जेट्ठा ।
आठ नक्षत्र चन्द्रमा के साथ प्रमर्दयोग करते हैं, जैसे
१. कृत्तिका, २. रोहिणी, ३. पुनर्वसु, ४. मघा, ५. चित्रा, ६. विशाखा, ७. अनुराधा, ८. ज्येष्ठा (१९१) । विवेचन— चन्द्रमा के साथ स्पर्श करने को प्रमर्दयोग कहते हैं । उक्त आठ नक्षत्र उत्तर और दक्षिण दोनों ओर से स्पर्श करते हैं। चन्द्रमा उनके बीच में से गमन करता हुआ निकल जाता है।
द्वार - सूत्र १२० - जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स दारा अट्ठ जोयणाई उड्डुं उच्चत्तेणं पण्णत्ता। जम्बूद्वीप नामक द्वीप के चारों द्वार आठ-आठ योजन ऊंचे कहे गये हैं (१२० ) । १२१ – सव्वेसिंपिणं दीवसमुद्दाणं दारा अट्ठ जोयणाई उड्डुं उच्चत्तेणं पण्णत्ता । सभी द्वीप और समुद्रों के द्वार आठ-आठ योजन ऊंचे कहे गये हैं (१२१)। बन्धस्थिति-सूत्र
१२२ –— पुरिसवेयणिज्जस्स णं कम्मस्स जहण्णेणं अट्ठसंवच्छराई बंधठिती पण्णत्ता । पुरुषवेदनीय कर्म का जघन्य स्थितिबन्ध आठ वर्ष कहा गया है (१२२) ।
१२३ – जसोकित्तीणामस्स णं कम्मस्स जहण्णेणं अट्ठ मुहुत्ताइं बंधठिती पण्णत्ता । यशःकीर्तिनामकर्म का जान्य स्थितिबन्ध आठ मुहूर्त कहा गया है (१२३) ।
१२४ – उच्चागोतस्स णं कम्मस्स (जहण्णेणं अट्ठ मुहुत्ताइं बंधठिती पण्णत्ता ) । उच्चगोत्र कर्म का जघन्य स्थितिबन्ध आठ मुहूर्त कहा गया है (१२४) ।
कुलकोटि-सूत्र
१२५— इंदियाणं अट्ठ जाति-कुलकोडी - जोणीपमुह - सतसहस्सा पण्णत्ता । त्रीन्द्रिय जीवों की जाति - कुलकोटियोनियां आठ लाख कही गई हैं (१२५) ।