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नवम स्थान
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१. जीव, २. अजीव, ३. पुण्य, ४. पाप, ५. आस्रव, ६. संवर, ७. निर्जरा, ८. बन्ध, ९. मोक्ष ( ६ ) ।
जीव-सूत्र
७– णवविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा —— पुढविकाइया, (आउकाइया, तेउक़ाइया, वाउकाइया), वणस्सइकाइया, बेइंदिया, (तेइंदिया, चउरिंदिया), पंचिंदिया ।
संसार - समापन्नक जीव नौ प्रकार के कहे गये हैं, जैसे—
१. पृथ्वीकायिक, २. अप्कायिक, ३. तेजस्कायिक, ४. वायुकायिक, ५. वनस्पतिकायिक, ६. द्वीन्द्रिय, ७. त्रीन्द्रिय, ८. चतुरिन्द्रिय, ९. पंचेन्द्रिय (७)।
गति - आगति-सूत्र
6 • पुढविकाइया णवगतिया णवआगतिया पण्णत्ता, तं जहा ——– पुढविकाइए, पुढविकाइए उववज्जमाणे पुढविकाइएहिंतो वा, ( आउकाइएहिंतो वा, तेउकाइएहिंतो वा, वाउकाइएहिंतो वा, वणस्सइकाइएहिंतो वा, बेइंदिएहिंतो वा, तेइंदिएहिंतो वा, चउरिदिएहिंतो वा ), पंचिंदिएहिंतो वा उववज्जेज्जा ।
से चेवणं से पुढविकाइए पुढविकायत्तं विप्पजहमाणे पुढविकाइयत्ताए वा, (आउकाइयत्ताए वा, तेकाइयत्ता वा, वाउकाइयत्ताए वा, वणस्सइकाइयत्ताए वा, बेइंदियत्ताए वा, तेइंदियत्ताए वा, चउरिदियत्ताए वा ), पंचिंदियत्ताए वा गच्छेज्जा ।
पृथ्वीकायिक जीव नौ गतिक और नौ आगतिक कहे गये हैं, जैसे—
१. पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाला पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायिकों से, या अप्कायिकों से, या तेजस्कायिकों से, या वायुकायिकों से, या वनस्पतिकायिकों से, या द्वीन्द्रियों से, या त्रीन्द्रियों से, या चतुरिन्द्रियों से, या पंचेन्द्रियों से आकर उत्पन्न होता है ।
२. वही पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायिकपने को छोड़ता हुआ पृथ्वीकायिक रूप से, या अप्कायिक रूप से, या तेजस्कायिक रूप से, या वायुकायिक रूप से, या वनस्पतिकायिक रूप से, या द्वीन्द्रिय रूप से, या त्रीन्द्रियरूप से, या चतुरिन्द्रिय रूप से, या पंचेन्द्रिय रूप से जाता है, अर्थात् उनमें उत्पन्न होता है ( ८ ) ।
९- - एवमाउकाइयावि जाव पंचिंदियत्ति ।
इसी प्रकार अप्कायिक से लेकर पंचेन्द्रिय तक के सभी जीव नौ गतिक और नौ आगतिक जानना चाहिए (९) ।
जीव-सूत्र
१० णवविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा— एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, णेरइया, पंचेंदियतिरिक्खजोणिया, मणुया, देवा, सिद्धा ।
अहवा—णवविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा— पढमसमयणेरइया, अपढमसमयणेरइया,