Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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जीवों ने आठ कर्मप्रकृतियों का अतीत काल में संचय किया है, वर्तमान में कर रहे हैं और भविष्य में करेंगे,
अष्टम स्थान
जैसे
१. ज्ञानावरणीय, २ . दर्शनावरणीय, ३. वेदनीय, ४. मोहनीय, ५. आयु, ६. नाम, ७. गोत्र, ८. अन्तराय (५) । ६– - णेरड्या णं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा एवं चेव । नाक जीवों ने उक्त आठ कर्मप्रकृतियों का संचय किया है, कर रहे हैं और भविष्य में करेंगे (६) । ७- एवं णिरंतरं जाव वेमाणियाणं ।
इसी प्रकार वैमानिक तक के सभी दण्डक वाले जीवों ने आठ कर्मप्रकृतियों का संचय किया है, कर रहे हैं और करेंगे (७)।
८–
- जीवा णं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणिंसु वा उवचिणंति वा उवचिणिस्संति वा एवं चेव । एवं चिण उवचिण-बंध - उदीर-वेय तह णिज्जरा चेव ।
एते छ चवीसा दंडगा भाणियव्वा ।
जीवों ने आठ कर्मप्रकृतियों का संचय, उपचय, बन्ध, उदीरण, वेदन और निर्जरण किया है, कर रहे हैं और
करेंगे।
इसी प्रकार नारकों से लेकर वैमानिकों तक सभी दण्डकों के जीवों ने आठ कर्मप्रकृतियों का संचय, उपचय, बन्ध, उदीरण, वेदन और निर्जरण किया है, कर रहे हैं और करेंगे।
इस प्रकार संचय आदि छह पदों की अपेक्षा चौवीस दण्डक जानना चाहिए ( ८ ) ।
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आलोचना - सूत्र
९– - अट्ठहिं ठाणेहिं मायी मायं कट्टु णो आलोएज्जा, णो पडिक्कमेज्जा, ( णो णिंदेज्जा, णो गरिहेज्जा, णो विउट्टेज्जा, णो विसोहेज्जा, णो अकरणयाए अब्भुट्टेज्जा, णो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं ) पडिवज्जेज्जा, तं जहा करिसु वाहं, करेमि वाहं, करिस्सामि वाहं, अकित्ती वा मे सिया, अवण्णे वा मे सिया, अविणए वा मे सिया, कित्ती वा मे परिहाइस्सइ, जसे वा मे परिह इस्सइ ।
आठ कारणों से मायावी पुरुष माया करके न उसकी आलोचना करता है, न प्रतिक्रमण करता है, न निन्दा करता है, न गर्हा करता है, न व्यावृत्ति करता है, न विशुद्धि करता है, न पुनः वैसा नहीं करूंगा, ऐसा कहने को उद्यत होता है, न यथायोग्य प्रायश्चित्त और तपःकर्म को स्वीकार करता है । वे आठ कारण इस प्रकार हैं—
१. मैंने (स्वयं) अकरणीय कार्य किया है,
२. मैं अकरणीय कार्य कर रहा हूँ,
३. मैं अकरणीय कार्य करूंगा,
४. मेरी अकीर्ति होगी,
५. मेरा अवर्णवाद होगा,
६. मेरा अविनय होगा,