Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
अंडसुहुमे, लेणसुहुमे, सिणेहसुहुमे।
सूक्ष्म जीव आठ प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. प्राणसूक्ष्म- अनुंधरी, कुन्थु आदि प्राणी, २. पनकसूक्ष्म- उल्ली आदि, ३. बीजसूक्ष्म- धान आदि के बीज के मुख-मूल की कणी आदि जिसे तुष-मुख कहते हैं। ४. हरितसूक्ष्म- एकदम नवीन उत्पन्न हरित काय जो पृथ्वी के समान वर्ण वाला होता है। ५. पुष्पसूक्ष्म- वट-पीपल आदि के सूक्ष्म पुष्प। ६. अण्डसूक्ष्म- मक्षिका, पिपीलिकादि के सूक्ष्म अण्डे। ७. लयनसूक्ष्म- कीडीनगरा आदि।
८. स्नेहसूक्ष्म— ओस, हिम आदि जलकाय के सूक्ष्म जीव (३५)। भरतचक्रवर्ति-सूत्र
३६- भरहस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स अट्ठ पुरिसजुगाइं अणुबद्धं सिद्धाइं (बुद्धाई मुत्ताइं अंतगडाइं परिणिव्वुडाई) सव्वदुक्खप्पहीणाई, तं जहा—आदिच्चजसे, महाजसे, अतिबले, महाबले, तेयवीरिए, कत्तवीरिए, दंडवीरिए, जलवीरिए।
चातुरन्त चक्रवर्ती राजा भरत के आठ उत्तराधिकारी पुरुष-युग राजा लगातार सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिवृत्त और समस्त दुःखों से रहित हुए, जैसे— ___१. आदित्ययश, २. महायश, ३. अतिबल, ४. महाबल, ५. तेजोवीर्य, ६. कार्तवीर्य,
७. दण्डवीर्य, ८. जलवीर्य (३६)। पार्श्वगण-सूत्र
३७– पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणियस्स अट्ठ गणा अट्ठ गणहरा होत्था, तं जहा—सुभे, अजघोसे, वसिढे, बंभचारी, सोमे, सिरिधरे, वीरभद्दे, जसोभहे।
पुरुषादानीय (लोकप्रिय) अर्हन् पार्श्वनाथ के आठ गण और आठ गणधर हुए, जैसे
१. शुभ, २. आर्यघोष, ३. वशिष्ठ, ४. ब्रह्मचारी, ५. सोम, ६. श्रीधर, ७. वीरभद्र, ८. यशोभद्र (३७)। दर्शन-सूत्र
३८- अट्ठविधे दंसणे पण्णत्ते, तं जहा—सम्मदंसणे, मिच्छदंसणे, सम्मामिच्छदसणे, |चक्खुदंसणे, (अचक्खुदंसणे, ओहिदंसणे), केवलदंसणे, सुविणदसणे।
दर्शन आठ प्रकार का कहा गया है, जैसे१. सम्यग्दर्शन, २. मिथ्यादर्शन, ३. सम्यग्मिथ्यादर्शन, ४. चक्षुदर्शन, ५. अचक्षुदर्शन, ६. अवधिदर्शन, ७. केवलदर्शन, ८. स्वप्नदर्शन (३८)।