Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम स्थान
६१३
देवत्ताए उववत्तारो भवति, तं जहा—णो महिड्डिएस (णो महज्जुइएसु णो महाणुभागेसु णो महायसेसु णो महाबले णो महासोक्खेसु) णो दूरंगतिएसु णो चिरट्ठितिए । से णं तत्थ देवे भवति णो महिड्डिए (णो महज्जुइए णो महाणुभागे णो महायसे णो महाबले णो महासोक्खे णो दूरंगतिए) णो चिट्ठितिए ।
जावि य से तत्थ बाहिरब्धंतरिया परिसा भवति, सावि य णं णो आढाति णो परिजाणाति णो महरिहेणं आसणेणं उवणिमंतेति, भासंपि य से भासमाणस्स जाव चत्तारि पंच देवा अणुत्ता चेव अब्भुतिमा बहुं देवे ! भासउ - भासउ ।
से णं ततो देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता इहेव माणुस् भवे जाई इमाई कुलाई भवंति, तं जहा— अंतकुलाणि वा पंतकुलाणि वा तुच्छकुलाणि वा दरिद्दकुलाणि वा भिक्खागकुलाणि वा किवणकुलाणि वा, तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाति । तत्थ मे भवति दुरूवे दुवण्णे दुग्गंधे दुरसे दुफासे अणिट्ठे अकंते अप्पिए अमणुण्णे अमणामे हीणस्सरे दीणस्सरे अणिट्ठस्सरे अकंतस्सरे अप्पियस्सरे अमणुण्णस्सरे अमणामस्सरे अणाज्जवयणे पच्चायाते ।
जावि य से सत्थ बाहिरब्धंतरिया परिसा भवति, सावि य णं णो आढाति णो परिजाणाति णो महरिहेणं आसणेणं उवणिमंतेति, भासंपि य से भासमाणस्स जाव चत्तारि पंच जणा अणुत्ता चेव अब्भुतिमा बहुं अज्जउत्तो ! भासउ - भासउ ।
मायी णं मायं कट्टु आलोचित पडिक्कंते कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोगे देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तं जहा — महिड्डिएसु ( महज्जुइएसु महाणुभागेसु महायसेसु महाबलेसु महासोक्खेसु दूरगंतिएसु) चिरट्ठितिए । से णं तत्थ देवे भवति महिड्डिए ( महज्जुइए महाणुभागे महायसे महाबले महासोक्खे दूरंगतिए) चिरट्ठितिए हार- विराइय-वच्छे कडक - तुडित-थंभित-भुए अंगद - कुंडल - मट्ठ- गंडतल - कण्णपीढधारी विचित्तहत्थाभरणे विचित्तवत्थाभरणे विचित्तमालामउली कल्लाणगपवर- वत्थ- परिहिते कल्लाणग-'पवर-गंध-मल्लाणुलेवणधरे' भासुरबोंदी पलंब - वणमालधरे दिव्वेणं aणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं रसेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघातेणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्डी दिव्वाए जुईए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेस्साए दस दिसाओ उज्जोवेमाणे पभासेमाणे महयाहत - णट्ट-गीत-वादित - तंती - तल-ताल-तुडित- घणमुइंग- पडुप्पवादित-रवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ ।
जावि य से तत्थ बाहिरब्धंतरिया परिसा भवति, सावि य णं आढाइ परिजानाति महरिहेणं आसेणणं उवणिमंतेति, भासंपि य से भासमाणस्स जाव चत्तारि पंच देवा अणुत्ता चेव अब्भुति बहुं देवे ! भासउ - भासउ ।
से णं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ( भवक्खएणं ठितिक्खएणं अनंतरं चयं ) चइत्ता इहेव
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