Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम स्थान
आठ स्थानों से सम्पन्न अनगार अपने दोषों की आलोचना करने के लिए योग्य होता है, जैसे— १. जातिसम्पन्न, २. कुलसम्पन्न, ३. विनयसम्पन्न, ४. ज्ञानसम्पन्न, ५. दर्शनसम्पन्न, ६. चारित्रसम्पन्न, ७. क्षान्त (क्षमाशील), ८. दान्त (इन्द्रिय- जयी) (१९) ।
प्रायश्चित्त-सूत्र
२०– अट्ठविहे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा—आलोयणारिहे, पडिक्कमणारिहे, तदुभयारिहे, विवेगारिहे, विउस्सग्गारिहे, तवारिहे, छेयारिहे, मूलारिहे।
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प्रायश्चित्त आठ प्रकार का कहा गया है, जैसे
१. आलोचना के योग्य, २. प्रतिक्रमण के योग्य, ३. आलोचना और प्रतिक्रमण के योग्य,
४. विवेक के योग्य, ५. व्युत्सर्ग के योग्य, ६. तप के योग्य, ७. छेद के योग्य, ८. मूल के योग्य (२०) । मदस्थान - सूत्र
२१ – अट्ठ मयट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा ——– जातिमए, कुलमए, बलमए, रूवमए, तवमए, सुतमए, लाभमए, इस्सरियमए ।
मद के स्थान आठ कहे गये हैं, जैसे
१. जातिमद, २. कुलमद, ३. बलमद, ४. रूपमद, ५. तपोमद, ६. श्रुतमद, ७. लाभमद, ८. ऐश्वर्यमद (२१) । अक्रियावादि-सूत्र
२२—– अट्ठ अकिरियावाई पण्णत्ता, तं जहा—एगावाई, अणेगावाई, मितवाई, णिम्मितवाई, सायवाई, समुच्छेदवाई, णितावाई, ण संतिपरलोगवाई।
अक्रियावादी आठ प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. एकवादी — एक ही तत्त्व को स्वीकार करने वाले
२. अनेकवादी — एकत्व को सर्वथा अस्वीकार कर अनेक तत्त्वों को ही मानने वाले ।
३. मितवादी — जीवों को परिमित मानने वाले ।
४. निर्मितवादी — ईश्वर को सृष्टि का निर्माता मानने वाले ।
५. सातवादी— सुख से ही सुख की प्राप्ति मानने वाले ।
६. समुच्छेदवादी— क्षणिकवादी, वस्तु को सर्वथा क्षण विनश्वर मानने वाले ।
७. नित्यवादी — वस्तु को सर्वथा नित्य मानने वाले ।
८. अ - शान्ति - परलोकवादी —— मोक्ष एवं परलोक को नहीं मानने वाले (२२) ।
महानिमित्त - सूत्र
२३ – अट्ठविहे महाणिमित्ते पण्णत्ते, तं जहा —— भोमे, उप्पाते, सुविणे, अंतलिक्खे, अंगे, सरे, लक्खणे, वंजणे ।