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स्थानाङ्गसूत्रम्
५. पर के आघात से, गड्ढे आदि में गिर जाने से। ६. सांप आदि के स्पर्श से काटने से। ७. आन-पान— श्वासोच्छ्वास के निरोध से (७२)।
विवेचन– सप्तम स्थान के अनुरोध से यहाँ अकाल मरण के सात कारण बताये गये हैं। इनके अतिरिक्त रक्त-क्षय से, संक्लेश की वृद्धि से, हिम-पात से, वज्र-पात से, अग्नि से, उल्कापात से, जल-प्रवाह से, गिरि और वृक्षादि से नीचे गिर पड़ने से भी अकाल में आयु का भेदन या विनाश हो जाता है।
जीव-सूत्र
७३- सत्तविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा—पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सतिकाइया, तसकाइया, अकाइया।
अहवा– सत्तविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा—कण्हलेसा, (णीललेसा, काउलेसा, तेउलेसा, पम्हलेसा), सुक्कलेसा, अलेसा।
सर्व जीव सात प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. पृथिवीकायिक, २. अप्कायिक, ३. तेजस्कायिक, ४. वायुकायिक, ५. वनस्पतिकायिक, ६. त्रसकायिक, ७. अकायिक। अथवा सर्व जीव सात प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कृष्णलेश्या वाले, २. नीललेश्या वाले, ३. कापोतलेश्या वाले, ४. तेजोलेश्या वाले,
५. पद्मलेश्या वाले, ६. शुक्ललेश्या वाले, ७. अलेश्य (७३)। ब्रह्मदत्त-सूत्र
७४— बंभदत्ते णं राया चाउरंतचक्कवट्टी सत्त धणूई उड्डे उच्चत्तेणं, सत्त य वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा अधेसत्तमाए पुढवीए अप्पतिट्ठाणे णरए णेरइयत्ताए उववण्णे। ____ चातुरन्त चक्रवर्ती राजा ब्रह्मदत्त सात धनुष ऊंचे थे। वे सात सौ वर्ष की उत्कृष्ट आयु का पालन कर कालमास में काल कर नीचे सातवीं पृथिवी के अप्रतिष्ठान नरक में नारक रूप से उत्पन्न हुए (७४)। मल्ली-प्रव्रज्या-सूत्र
७५- मल्ली णं अरहा अप्पसत्तमे मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, तं जहामल्ली विदेहरायवरकण्णगा, पडिबुद्धी इक्खागराया, चंदच्छाये अंगराया, रुप्पी कुणालाधिपती, संखे कासीराया, अदीणसत्तू कुरुराया, जितसत्तू पंचालराया।
मल्ली अर्हन् अपने सहित सात राजाओं के साथ मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए, जैसे१. विदेहराज की वरकन्या मल्ली। २. साकेत-निवासी इक्ष्वाकुराज प्रतिबुद्धि। ३. अंग जनपद का राजा चम्पानिवासी चन्द्रच्छाय।