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सप्तम स्थान
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विवेचन- आत्मा जब वेदनादि परिणाम के साथ एक रूप हो जाता है तब वेदनीय आदि के कर्मपुद्गलों का विशेष रूप से घात-निर्जरण होता है। इसी को समुद्घात कहते हैं। समुद्घात के समय जीव के प्रदेश शरीर से बाहर भी निकलते हैं। वेदना आदि के भेद से समुद्घात के भी सात भेद कहे गये हैं। इनमें से आहारक और केवलि-समुद्घात केवल मनुष्यगति में ही संभव हैं, शेष तीन गतियों में नहीं। यह इस सूत्र से सूचित किया गया है। प्रवचन-निह्नव-सूत्र
१४०- समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तित्थंसि सत्त पवयणणिण्हगा पण्णत्ता, तं जहाबहुरता, जीवपएसिया, अवत्तिया, सामुच्छेइया, दोकिरिया, तेरासिया, अबद्धिया।
श्रमण भगवान् महावीर के तीर्थ में सात प्रवचननिह्नव (आगम के अन्यथा-प्ररूपक) कहे गये हैं, जैसे१. बहुरत-निह्नव, २. जीव प्रादेशिक-निहव, ३. अव्यक्तिक-निह्नव, ४. सामुच्छेदिक-निह्नव, ५. द्वैक्रिय-निह्नव, ६. त्रैराशिक-निह्नव, ७. अबद्धिक-निह्नव (१४०)।
१४१- एएसि णं सत्तण्हं पवयणणिण्हगाणं सत्त धम्मायरिया हुत्था, तं जहा—जमाली, तीसगुत्ते, आसाढे, आसमित्ते, गंगे, छलुए, गोट्ठामाहिले। • इन सात प्रवचन-निह्नवों के सात धर्माचार्य हुए, जैसे
१. जमाली, २. तिष्यगुप्त, ३. आषाढ़भूति, ४. अश्वमित्र, ५. गंग, ६. षडुलूक, ७. गोष्ठामाहिल (१४१)।
१४२- एतेसि णं सत्तण्हं पवयणणिण्हगाणं सत्तउप्पत्तिणगरा हुत्था, तं जहा : संग्रहणी-गाथा
सावत्थी उसभपुरं, सेयविया मिहिलउल्लगातीरं ।।
पुरिमंतरंजि दसपुरं, णिण्हगउप्पत्तिणगराइं ॥१॥ इन सात प्रवचन-निह्नवों की उत्पत्ति सात नगरों में हुई, जैसे१. श्रावस्ती, २. ऋषभपुर, ३. श्वेतविका, ४. मिथिला, ५. उल्लुकातीर, ६. अन्तरंजिका, ७. दशपुर (१४२)।
विवेचन— भगवान् महावीर के समय में और उनके निर्वाण के पश्चात् भगवान् महावीर की परम्परा में कुछ सैद्धान्तिक विषयों को लेकर मतभेद उत्पन्न हुआ। इस कारण कुछ साधु भगवान् के शासन से पृथक् हो गये, उनका आगम में 'निह्नव' नाम से उल्लेख किया गया है। इनमें से कुछ वापिस शासन में आ गए, कुछ आजीवन अलग रहे। इन निह्नवों के उत्पन्न होने का समय भी महावीर के कैवल्य-प्राप्ति के १६ वर्ष के बाद से लेकर उनके निर्वाण के ५८४ वर्ष बाद तक का है। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
१. प्रथम निह्नव बहुरतवाद- भ. महावीर के कैवल्य-प्राप्ति के १४ वर्ष बाद श्रावस्ती नगरी में बहुरतवाद की उत्पत्ति जमालि ने की। वे कण्डपुर नगर के निवासी थे। उनकी मां का नाम सुदर्शना और पत्नी का नाम प्रियदर्शना था। वे पांच सौ पुरुषों के साथ भ. महावीर के पास प्रव्रजित हुए। उनके साथ उनकी पत्नी भी एक हजार स्त्रियों के साथ प्रव्रजित हुई। जमालि ने ग्यारह अंग पढ़े और नाना प्रकार की तपस्याएं करते हुए अपने पाँच सौ साथियों के साथ ग्रामानुग्राम विहार करते हुए वे श्रावस्ती नगरी पहुंचे। घोर तपश्चरण करने एवं पारणा में रूखा-सूखा