Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
सप्तम स्थान
६०३
५. वराहीविद्या
= सिंहीविद्या ६. काकविद्या
= उलूकीविद्या ७. पोताकीविद्या
= उलावकीविद्या आचार्य ने रजोहरण को मंत्रित कर उसे देते हुए कहा—वत्स! इन सात विद्याओं से तू उस परिव्राजक को पराजित कर देगा। फिर भी यदि आवश्यकता पड़े तो तू इस रजोहरण को घुमाना, फिर तुझे वह पराजित नहीं कर सकेगा।
रोहगुप्त सातों विद्याएं सीख कर और गुरु का आशीर्वाद लेकर राजसभा में गया। राजा बलश्री से सारी बात कह कर उसने परिव्राजक को बुलवाया। दोनों शास्त्रार्थ के लिए उद्यत हुए। परिव्राजक ने अपना पक्ष स्थापित करते हुए कहा राशि दो हैं—एक जीवराशि और दूसरी अजीवराशि। रोहगुप्त ने जीव, अजीव और नोजीव, इन तीन राशियों की स्थापना करते हुए कहा—परिव्राजक का कथन मिथ्या है। विश्व में स्पष्ट रूप से तीन राशियां पाई जाती हैं—मनुष्य तिर्यंच आदि जीव हैं, घट-पट आदि अजीव हैं और छछुन्दर की कटी हुई पूंछ नोजीव है। इत्यादि अनेक युक्तियों से अपने कथन को प्रमाणित कर रोहगुप्त ने परिव्राजक को निरुत्तर कर दिया।
अपनी हार देखकर परिव्राजक ने क्रद्ध हो एक-एक कर अपनी विद्याओं का प्रयोग करना प्रारम्भ किया। रोहगुप्त ने उसकी प्रतिपक्षी विद्याओं से उन सबको विफल कर दिया। तब उसने अन्तिम अस्त्र के रूप में गर्दभीविद्या का प्रयोग किया। रोहगुप्त ने उस मंत्रित रजोहरण को घुमा कर उसे भी विफल कर दिया। सभी उपस्थित सभासदों ने परिव्राजक को पराजित घोषित कर रोहगुप्त की विजय की घोषणा की।
रोहगुप्त विजय प्राप्त कर आचार्य के पास आया और सारी घटना उन्हें ज्यों की त्यों सुनाई। आचार्य ने कहावत्स! तूने असत् प्ररूपणा कैसे की? तूने अन्त में यह क्यों नहीं स्पष्ट कर दिया कि राशि तीन नहीं हैं, केवल परिव्राजक को परास्त करने के लिए ही मैंने तीन राशियों का समर्थन किया।
आचार्य ने फिर कहा-अभी समय है। जा और स्पष्टीकरण कर आ।
रोहगुप्त अपना पक्ष त्यागने के लिए तैयार नहीं हुआ। तब आचार्य ने राजा के पास जाकर कहा–राजन्! मेरे शिष्य रोहगुप्त ने जैन सिद्धान्त के विपरीत तत्त्व की स्थापना की है। जिनमत के अनुसार दो ही राशि हैं। किन्तु समझाने पर भी रोहगुप्त अपनी भूल स्वीकार नहीं कर रहा है। आप राजसभा में उसे बुलायें और मैं उसके साथ चर्चा करूंगा। राजा ने रोहगुप्त को बुलवाया। चर्चा प्रारम्भ हुई। अन्त में आचार्य ने कहा—यदि वास्तव में तीन राशि हैं तो 'कुत्रिकापण' में चलें और तीसरी राशि नोजीव मांगें।
राजा को साथ लेकर सभी लोग 'कुत्रिकापण" गये और वहां के अधिकारी से कहा-हमें जीव, अजीव और नोजीव, ये तीन वस्तुएं दो। उसने जीव और अजीव दो वस्तुएं ला दी और बोला-'नोजीव' नाम की कोई वस्तु संसार में नहीं है। राजा को आचार्य का कथन सत्य प्रतीत हुआ और उसने रोहगुप्त को अपने राज्य से निकाल दिया। आचार्य ने भी उसे संघ से बाह्य घोषित कर दिया। तब वह अपने अभिमत का प्ररूपण करते हुए विचरने लगा। अन्त में उसने वैशेषिक मत की स्थापना की।
१.
जिसे आज 'जनरल स्टोर्स' कहते हैं, पूर्वकाल में उसे 'कुत्रिकापण' कहते थे। वहाँ अखिल विश्व की सभी वस्तुएँ बिका करती थीं। वह देवाधिष्ठित माना जाता है।