Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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४. अनायुक्त त्वग्वर्तन— अयतनापूर्वक सोना, करवट बदलना। ५. अनायुक्त उल्लंघन—- अयतनापूर्वक देहली आदि को लांघना । ६. अनायुक्त प्रल्लंघन—- अयतनापूर्वक नाली आदि को लांघना ।
७. अनायुक्त सर्वेन्द्रिय योगयोजना — अयतनापूर्वक सब इन्द्रियों का व्यापार करना (१३६)।
१३७ –— लोगोवयारविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा— अब्भासवत्तित्तं, परच्छंदाणुवत्तित्तं, कज्जहेउं, कतपडिकतिता, अत्तगवेसणता, देसकालण्णता, सव्वत्थेसु अपडिलोमता ।
लोकोपचार विनय सात प्रकार का कहा गया है, जैसे
१. अभ्यासवर्त्तत् श्रुतग्रहण करने के लिए गुरु के समीप बैठना । २. परछन्दानुवर्त्तित्व—–— आचार्यादि के अभिप्राय के अनुसार चलना ।
३. कार्यहेतु— 'इसने मुझे ज्ञान दिया' ऐसे भाव से उनका विनय करना ।
४. कृतप्रतिकृतिता — प्रत्युपकार की भावना से विनय करना ।
५. आर्तगवेषणता — रोग पीड़ित के लिए औषध आदि का अन्वेषण करना ।
६. देश - कालज्ञता —- देश - काल के अनुसार अवसरोचित विनय करना ।
७. सर्वार्थ- अप्रतिलोमता — सब विषयों में अनुकूल आचरण करना (१३७ ) ।
स्थानाङ्गसूत्रम्
समुद्घात-सूत्र
१३८ – सत्त समुग्धाता पण्णत्ता, तं जहा—वेयणासमुग्धाए, कसायसमुग्धाए, मारणंतियसमुग्धाए, वेउव्वियसमुग्धाए, तेजससमुग्धाए, आहारगसमुग्धाए, केवलिसमुग्धाए ।
समुद्घात सात कहे गये हैं, जैसे—
१. वेदनासमुद्घा — वेदना से पीड़ित होने पर कुछ आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना ।
२. कषायसमुद्घात — तीव्र क्रोधादि की दशा में कुछ आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना ।
३. मारणान्तिकसमुद्घात — मरण से पूर्व कुछ आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना ।
४. वैक्रियसमुद्घात— विक्रिया करते समय मूल शरीर को नहीं छोड़ते हुए उत्तर शरीर में जीवप्रदेशों का
प्रवेश करना ।
५. तैजससमुद्घात—–— तेजोलेश्या प्रकट करते समय कुछ आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना ।
६. आहारकसमुद्घात— समीप में केवली के न होने पर चतुर्दशपूर्वी साधु की शंका के समाधानार्थ मस्तक
से एक श्वेत पुतले के रूप में कुछ आत्म-प्रदेशों का केवली के निकट जाना और वापिस आना ।
७. केवलिसमुद्घात— आयुष्य के अन्तर्मुहूर्त रहने पर तथा शेष तीन कर्मों की स्थिति बहुत अधिक होने पर उसके समीकरण करने के लिए दण्ड, कपाट आदि के रूप में जीव- प्रदेशों का शरीर से बाहर फैलना (१३८)।
१३९ - मणुस्साणं सत्त समुग्धाता पण्णत्ता एवं चेव ।
मनुष्यों के इसी प्रकार ये ही सातों समुद्घात कहे गये हैं (१३९) ।