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________________ ५९८ ४. अनायुक्त त्वग्वर्तन— अयतनापूर्वक सोना, करवट बदलना। ५. अनायुक्त उल्लंघन—- अयतनापूर्वक देहली आदि को लांघना । ६. अनायुक्त प्रल्लंघन—- अयतनापूर्वक नाली आदि को लांघना । ७. अनायुक्त सर्वेन्द्रिय योगयोजना — अयतनापूर्वक सब इन्द्रियों का व्यापार करना (१३६)। १३७ –— लोगोवयारविणए सत्तविधे पण्णत्ते, तं जहा— अब्भासवत्तित्तं, परच्छंदाणुवत्तित्तं, कज्जहेउं, कतपडिकतिता, अत्तगवेसणता, देसकालण्णता, सव्वत्थेसु अपडिलोमता । लोकोपचार विनय सात प्रकार का कहा गया है, जैसे १. अभ्यासवर्त्तत् श्रुतग्रहण करने के लिए गुरु के समीप बैठना । २. परछन्दानुवर्त्तित्व—–— आचार्यादि के अभिप्राय के अनुसार चलना । ३. कार्यहेतु— 'इसने मुझे ज्ञान दिया' ऐसे भाव से उनका विनय करना । ४. कृतप्रतिकृतिता — प्रत्युपकार की भावना से विनय करना । ५. आर्तगवेषणता — रोग पीड़ित के लिए औषध आदि का अन्वेषण करना । ६. देश - कालज्ञता —- देश - काल के अनुसार अवसरोचित विनय करना । ७. सर्वार्थ- अप्रतिलोमता — सब विषयों में अनुकूल आचरण करना (१३७ ) । स्थानाङ्गसूत्रम् समुद्घात-सूत्र १३८ – सत्त समुग्धाता पण्णत्ता, तं जहा—वेयणासमुग्धाए, कसायसमुग्धाए, मारणंतियसमुग्धाए, वेउव्वियसमुग्धाए, तेजससमुग्धाए, आहारगसमुग्धाए, केवलिसमुग्धाए । समुद्घात सात कहे गये हैं, जैसे— १. वेदनासमुद्घा — वेदना से पीड़ित होने पर कुछ आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना । २. कषायसमुद्घात — तीव्र क्रोधादि की दशा में कुछ आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना । ३. मारणान्तिकसमुद्घात — मरण से पूर्व कुछ आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना । ४. वैक्रियसमुद्घात— विक्रिया करते समय मूल शरीर को नहीं छोड़ते हुए उत्तर शरीर में जीवप्रदेशों का प्रवेश करना । ५. तैजससमुद्घात—–— तेजोलेश्या प्रकट करते समय कुछ आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना । ६. आहारकसमुद्घात— समीप में केवली के न होने पर चतुर्दशपूर्वी साधु की शंका के समाधानार्थ मस्तक से एक श्वेत पुतले के रूप में कुछ आत्म-प्रदेशों का केवली के निकट जाना और वापिस आना । ७. केवलिसमुद्घात— आयुष्य के अन्तर्मुहूर्त रहने पर तथा शेष तीन कर्मों की स्थिति बहुत अधिक होने पर उसके समीकरण करने के लिए दण्ड, कपाट आदि के रूप में जीव- प्रदेशों का शरीर से बाहर फैलना (१३८)। १३९ - मणुस्साणं सत्त समुग्धाता पण्णत्ता एवं चेव । मनुष्यों के इसी प्रकार ये ही सातों समुद्घात कहे गये हैं (१३९) ।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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