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सप्तमस्थान
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२. अश्वराज वायु- अश्वसेना का अधिपति। ३. हस्तिराज ऐरावण— हस्तिसेना का अधिपति । ४. दामर्द्धि- वृषभसेना का अधिपति। ५. माठर— रथसेना का अधिपति। ६. श्वेत— नर्तकसेना का अधिपति। ७. तुम्बुरु- गन्धर्वसेना का अधिपति (११९)।
१२०- ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सत्त अणिया, सत्त अणियाहिवई पण्णत्ता, तं जहा—पायत्ताणिए जाव गंधव्वाणिए।
लहुपरक्कमे पायत्ताणियाहिवती जाव महासेते णट्टाणियाहिवती, रते गंधव्वाणियाधिपती। देवेन्द्र देवराज ईशान की सात सेनाएँ और सात सेनापति कहे गये हैं, जैसेसेनाएं–१. पदातिसेना, २. अश्वसेना, ३. हस्तिसेना, ४. वृषभसेना, ५. रथसेना, ६. नर्तकसेना, ७. गन्धर्वसेना। सेनापति—१. लघुपराक्रम— पदातिसेना का अधिपति। २. अश्वराज महावायु- अश्वसेना का अधिपति। ३. हस्तिराज पुष्पदन्त- हस्तिसेना का अधिपति। ४. महादामर्द्धि-वृषभसेना का अधिपति। ५. महामाठर— रथसेना का अधिपति। ६. महाश्वेत- नर्तकसेना का अधिपति। ७. रत- गन्धर्वसेना का अधिपति (१२०)। १२१- (जधा सक्कस्स तहा सव्वेसिं दाहिणिल्लाणं जाव आरणस्स।
जिस प्रकार शक्र के सेना और सेनापति कहे गये हैं, उसी प्रकार देवेन्द्र, देवराज सनत्कुमार, ब्रह्म, शुक्र, आनत और आरण इन सभी दक्षिणेन्द्रों की सात-सात सेनाएँ और सात-सात सेनापति जानना चाहिए (१२१)।
१२२-जधा ईसाणस्स तहा सव्वेसिं उत्तरिल्लाणं जाव अच्चुतस्स)।
जिस प्रकार ईशान की सेना और सेनापति कहे गये हैं, उसी प्रकार देवेन्द्र देवराज माहेन्द्र, लान्तक, सहस्रार, प्राणत और अच्युत, इन सभी उत्तरेन्द्रों की भी सात-सात सेनाएं और सात-सात सेनापति जानना चाहिए (१२२)।
१२३- चमरस्स णं असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो दुमस्स पायत्ताणियाधिपतिस्स सत्त कच्छाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–पढमा कच्छा जाव सत्तमा कच्छा।
- असुरेन्द्र, असुरकुमारराज चमर के पदातिसेना के अधिपति द्रुम के सात कक्षाएं कही गई हैं। जैसे पहली कक्षा, यावत् सातवीं कक्षा (१२३)।
१२४- चमरस्स णं असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो दुमस्स पायत्ताणियाधिपतिस्स पढमाए कच्छाए चउसट्ठि देवसहस्सा पण्णत्ता। जावतिया पढमा कच्छा तद्विगुणा दोच्चा कच्छा। जावतिया दोच्चा