Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सप्तम स्थान
चक्रवर्ती - रत्न - सूत्र
तं जहा
६७ –—–— एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स सत्त एगिंदियरतणा पण्णत्ता, चक्करयणे, छत्तरयणे, चम्मरयणे, दंडरयणे, असिरयणे, मणिरयणे, काकणिरयणे ।
प्रत्येक चातुरन्त चक्रवर्ती राजा के सात एकेन्द्रिय रत्न कहे गये हैं, जैसे—
१. चक्ररत्न, २. छत्ररत्न, ३. चर्मरत्न, ४. दण्डरत्न, ५. असिरत्न, ६. मणिरत्न, ७. काकणीरत्न (६७) । ६८ — एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स सत्त पंचिंदियरतणा पण्णत्ता, तं जहासेणावतिरयणे, गाहावतिरयणे, वड्डइरयणे, पुरोहितरयणे, इत्थिरयणे, आसरयणे, हत्थिरयणे ।
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विवेचन —— उपरोक्त दो सूत्रों में चक्रवर्ती के १४ रत्नों का नाम-निर्देश किया गया है। उनमें से प्रथम सूत्र में सात एकेन्द्रिय रत्नों के नाम हैं। चक्र, छत्र आदि एकेन्द्रिय पृथ्वीकायिक जीवों के द्वारा छोड़े गये काय से निर्मित हैं, अतः उन्हें एकेन्द्रिय कहा गया है। तिलोयपण्णत्ति में चक्रादि सात रत्नों को अचेतन और सेनापति आदि को सचेतन रत्न कहा गया है। किसी उत्कृष्ट या सर्वश्रेष्ठ वस्तु को रत्न कहा जाता है । चक्रवर्ती के ये सभी वस्तुएं अपनीअपनी जाति में सर्वश्रेष्ठ होती हैं ।
२.
प्रत्येक चातुरन्त चक्रवर्ती राजा के सात पंचेन्द्रिय रत्न कहे गये हैं, जैसे
१. सेनापतिरत्न, २. गृहपतिरत्न, ३. वर्धकीरत्न, ४. पुरोहितरत्न, ५. स्त्रीरत्न, ६. अश्वरत्न, ७. हस्तिरत्न (६८) ।
प्रवचनसारोद्धार में एकेन्द्रिय रत्नों का प्रमाण भी बताया गया है— चक्र, छत्र और दण्ड व्याम- प्रमाण हैं । अर्थात् तिरछे फैलाये हुए दोनों हाथों की अंगुलियों के अन्तराल जितने बड़े होते हैं। चर्मरत्न दो हाथ लम्बा होता है। असि (खड्ग) बत्तीस अंगुल का, मणि चार अंगुल लम्बा और दो अंगुल चौड़ा होता है। काकणीरत्न की लम्बाई चार अंगुल होती है । रत्नों का यह माप प्रत्येक चक्रवर्ती के अपने-अपने अंगुल से जानना चाहिये ।
चक्र, छत्र, दण्ड और असि, इन चार रत्नों की उत्पत्ति चक्रवर्ती की आयुध - शाला में तथा चर्म, मणि और काकणी रत्न की उत्पत्ति चक्रवर्ती के श्रीगृह में होती है। सेनापति, गृहपति, वर्धकी और पुरोहित इन पुरुषरत्नों की उत्पत्ति चक्रवर्ती की राजधानी में होती है। अश्व और हस्ती इन दो पंचेन्द्रिय तिर्यंच रत्नों की उत्पत्ति वैताढ्य (विजयार्ध) गिरि की उपत्यकाभूमि ( तलहटी) में होती है। स्त्रीरत्न की उत्पत्ति वैताढ्य पर्वत की उत्तर दिशा में अवस्थित विद्याधर श्रेणी में होती है।
१.
सेनापतिरत्न — यह चक्रवर्ती का प्रधान सेनापति है जो सभी मनुष्यों को जीतने वाला और अपराजेय होता है।
३.
१.
गृहपतिरत्न — यह चक्रवर्ती के गृह की सदा सर्वप्रकार से व्यवस्था करता है और उनके घर के भण्डार को सदा धन-धान्य से भरा-पूरा रखता है।
पुरोहितरत्न — यह राज पुरोहित चक्रवर्ती के शान्ति - कर्म आदि कार्यों को करता है तथा युद्ध के लिए प्रयाण - काल आदि को बतलाता है।
चोद्दस वररयणाई जीवाजीवप्पभेददुविहाई । (तिलोयपण्णत्ती, अ. ४, गा. १३६७)