Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
१. सम— जिसमें चरण और अक्षर सम हों, अर्थात् चार चरण हों और उनमें गुरु-लघु अक्षर भी समान हों अथवा जिसके चारों चरण सरीखे हों ।
२. अर्धसम —— जिसमें चरण या अक्षरों में से कोई एक सम हो, या विषम चरण होने पर भी उनमें गुरु
लघु अक्षर समान हों। अथवा जिसके प्रथम और तृतीय चरण तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण समान हों। ३. सर्वविषम जिसमें चरण और अक्षर सब विषम हों । अथवा जिसके चारों चरण विषम हों । इनके अतिरिक्त चौथा प्रकार नहीं पाया जाता ।
(१०) भणिति — गीत की भाषा दो प्रकार की कही गई है— संस्कृत और प्राकृत । ये दोनों प्रशस्त और ऋषिभाषित हैं और स्वर - मण्डल में गाई जाती हैं।
(११) प्रश्न — मधुर गीत कौन गाती है ? परुष और रूक्ष कौन गाती है ? चतुर गीत कौन गाती है ? विलम्ब गीत कौन गाती है ? द्रुत (शीघ्र ) गीत कौन गाती है ? तथा विस्वर गीत कौन गाती है ? (१२) उत्तर — श्यामा स्त्री मधुर गीत गाती है। काली स्त्री खर परुष और रूक्ष गाती है। केशी स्त्री चतुर गीत गाती है । काणी स्त्री विलम्ब गीत गाती है । अन्धी स्त्री द्रुत गीत गाती है और पिंगला स्त्री विस्वर गीत गाती है।
(१३) सप्तस्वरसीभर की व्याख्या इस प्रकार है—
१. तन्त्रीसम— तंत्री - स्वरों के साथ-साथ गाया जाने वाला गीत ।
२. तालसम— ताल-वादन के साथ-साथ गाया जाने वाला गीत ।
३. पादसम— स्वर के अनुकूल निर्मित गेयपद के अनुसार गाया जाने वाला गीत ।
४. लयसम— वीणा आदि को आहत करने पर जो लय उत्पन्न होती है, उसके अनुसार गाया जाने
वाला गीत ।
५. ग्रहसम― वीणा आदि के द्वारा स्वर पकड़े जाते हैं, उसी के अनुसार गाया जाने वाला गीत । ६. निःश्वसितोच्छ्वसित सम— सांस लेने और छोड़ने के क्रमानुसार गाया जाने वाला गीत । ७. संचारसम— सितार आदि के साथ गाया जाने वाला गीत ।
इस प्रकार गीत स्वर तंत्री आदि के साथ सम्बन्धित होकर सात प्रकार का हो जाता है।
(१४) उपसंहार — इस प्रकार सात स्वर, तीन ग्राम और इक्कीस मूर्च्छनाएं होती हैं। प्रत्येक स्वर सात तानों से
गाया जाता है, इसलिए (७ x ७ = ) ४९ भेद हो जाते हैं। इस प्रकार स्वर - मण्डल का वर्णन समाप्त हुआ (४८)।
कायक्लेश-सूत्र
४९ — सत्तविधे कायकिलेसे पण्णत्ते, तं जहा – ठाणातिए, उक्कुडुयासणिए, पडिमठाई, वीरासणिए, सज्जिए, दंडायतिए, लगंडसाई ।
कायक्लेश तप सात प्रकार का कहा गया है, जैसे
१. स्थानायतिक— खड़े होकर कायोत्सर्ग में स्थिर होना ।
२. उत्कुटुकासन — दोनों पैरों को भूमि पर टिकाकर उकडू बैठना ।