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सप्तमस्थान
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९- सत्त पाणेसणाओ पण्णत्ताओ। पान-एषणाएं सात कही गई हैं।
विवेचन— पीने के योग्य जल आदि की गवेषणा को पान-एषणा कहते हैं। उसके भी पिण्ड-एषणा के समान सात भेद इस प्रकार से जानना चाहिए
१. संसृष्ट-पान-एषणा, २. असंसृष्ट-पान-एषणा, ३. उद्धृत-पान-एषणा, ४. अल्पलेपिक-पान-एषणा, ५. अवगृहीत-पान-एषणा, ६. प्रगृहीत-पान-एषणा और ७. उज्झितधर्मा-पान-एषणा।
यहां इतना विशेष जानना चाहिए कि अल्पलेपिक-पान-एषणा का अर्थ कांजी, ओसामाण, उष्णजल, चावल-धोवन आदि से है और इक्षुरस, द्राक्षारस आदि लेपकृत-पान-एषणा है (९)।
१०- सत्त उग्गहपडिमाओ पण्णत्ताओ। अवग्रह-प्रतिमाएं सात कही गई हैं।
विवेचन- वसतिका, उपाश्रय या स्थान-प्राप्ति संबंधी प्रतिज्ञा या संकल्प करने को अवग्रह प्रतिमा कहते हैं। उसके सातों प्रकारों का विवरण इस प्रकार है
१. मैं अमुक प्रकार के स्थान में रहूँगा, दूसरे स्थान में नहीं। २. मैं अन्य साधुओं के लिए स्थान की याचना करूंगा तथा दूसरों के द्वारा याचित स्थान में रहूंगा। यह __ अवग्रहप्रतिमा गच्छान्तर्गत साधुओं के लिए होती है। ३. मैं दूसरों के लिए स्थान की याचना करूंगा, किन्तु दूसरों के द्वारा याचित स्थान में नहीं रहूंगा। यह
अवग्रहप्रतिमा यथाचन्दिक साधुओं के होती है। उनका सूत्र-अध्ययन जो शेष रह जाता है, उसे पूर्ण करने के लिए वे आचार्य से सम्बन्ध रखते हैं। अतएव वे आचार्य के लिए स्थान की याचना करते हैं, किन्तु स्वयं दूसरे साधुओं के द्वारा याचित स्थान में नहीं रहते। ४. मैं दूसरों के लिए स्थान की याचना नहीं करूंगा, किन्तु दूसरों के द्वारा याचित स्थात में रहूंगा। यह
अवग्रहप्रतिमा जिनकल्पदशा का अभ्यास करने वाले साधुओं के होती है। ५. मैं अपने लिए स्थान की याचना करूंगा, दूसरों के लिए नहीं। यह अवग्रहप्रतिमा जिनकल्पी साधुओं
के होती है। ६. जिस शय्यातर का मैं स्थान ग्रहण करूंगा, उसी के यहां धान-पलाल आदि सहज ही प्राप्त होगा, तो लूंगा,
अन्यथा उकडू या अन्य नैषधिक आसन से बैठकर ही रात बिताऊंगा। यह अभिग्रहप्रतिमा जिनकल्पी या
अभिग्रहविशेष के धारी साधुओं के होती है। ७. जिस शय्यातर का मैं स्थान ग्रहण करूंगा, उसी के यहां सहज ही बिछे हुए काष्ठपट्ट (तख्ता, चौकी)
आदि प्राप्त होगा तो लूंगा, अन्यथा उकडू आदि आसन से बैठा-बैठा ही रात बिताऊंगा। यह अवग्रहप्रतिमा
भी जिनकल्पी या अभिग्रहविशेष के धारी साधुओं के होती है (१०)। आचारचूला-सूत्र
११- सत्तसत्तिक्कया पण्णत्ता।