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सप्तम स्थान
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४१- सत्त सरा जीवणिस्सिता पण्णत्ता, तं जहा
सज्ज रवति मयूरो, कक्कडो रिसभं सरं । हंसो णदति गंधारं, मज्झिमं तु गवेलगा ॥१॥ अह कुसुमसंभवे काले, कोइला पंचमं सरं ।
छटुं च सारसा कोंचा, णेसायं सत्तमं गजो ॥२॥ जीव निःसृत सात स्वर कहे गये हैं, जैसे१. मयूर षड्ज स्वर में बोलता है। २. कुक्कुट ऋषभ स्वर में बोलता है। ३. हंस गान्धार स्वर में बोलता है। ४. गवेलक (भेड़) मध्यम स्वर में बोलता है। ५. कोयल वसन्त ऋतु में पंचम स्वर में बोलती है। ६. क्रौञ्च और सारस धैवत स्वर में बोलते हैं।
७. हाथी निषाद स्वर में बोलता है (४१)। • ४२- सत्त सरा अजीवणिस्सिता पण्णत्ता, तं जहा
सजं रवति मुइंगो, गोमुही रिसभं सरं ।। संखो णदति गंधारं, मज्झिमं पुण झल्लरी ॥१॥ चउचलणपतिट्ठाणा, गोहिया पंचमं सरं ।
आडंबरो धैवतियं, महाभेरी य सत्तमं ॥ २॥ अजीव-निःसृत सात स्वर कहे गये हैं, जैसे१. मृदंग से षड्ज स्वर निकलता है। २. गोमुखी से ऋषभ स्वर निकलता है। ३. शंख से गान्धार स्वर निकलता है। ४. झल्लरी से मध्यम स्वर निकलता है। ५. चार चरणों पर प्रतिष्ठित गोधिका से पंचम स्वर निकलता है। ६. ढोल से धैवत स्वर निकलता है। ७. महाभेरी से निषाद स्वर निकलता है (४२)। ४३- एतेसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरलक्खणा पण्णत्ता, तं जहा
सज्जेण लभति वित्तिं, कतं च णं विणस्सति । गावो मित्ता य पुत्ता य, णारीणं चेव वल्लभो ॥१॥ रिसभेण उ एसजं, सेणावच्चं धणाणि य । वत्थगंधमलंकारं. इथिओ सयणाणि य ॥ २॥
चउचलणपाता