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सप्तम स्थान
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३४- जे कोच्छा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा ते कोच्छा, ते मोग्गलायणा, ते पिंगलायणा, ते कोडीणो, [ण्णा ?], ते मंडलिणो, ते हारिता, ते सोमया।
जो कौत्स हैं, वे सात प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कौत्स, २. मौद्गलायन, ३. पिङ्गलायन, ४. कौडिन्य, ५. मण्डली, ६. हारित, ७. सौम्य (३४)।
३५– जे कोसिआ ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा ते कोसिआ, ते कच्चायणा, ते सालंकायणा, ते गोलिकायणा, ते पक्खिकायणा, ते अग्गिच्चा, ते लोहिच्चा।
जो कौशिक हैं, वे सात प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. कौशिक, २. कात्यायन, ३. सालंकायन, ४. गोलिकायन, ५. पाक्षिकायन, ६. आग्नेय, ७. लौहित्य (३५)।
३६- जे मंडवा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा ते मंडवा, ते आरिट्ठा, ते संमुता, ते तेला, ते एलावच्चा, ते कंडिल्ला, ते खारायणा।
जो माण्डव हैं, वे सात प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. माण्डव, २. अरिष्ट, ३. सम्मुत, ४. तैल, ५. एलापत्य, ६. काण्डिल्य, ७. क्षारायण (३६)।
३७– जे वासिट्ठा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा ते वासिट्ठा, ते उंजायणा, ते जारुकण्हा, ते वग्घावच्चा, ते कोंडिण्णा, ते सण्णी, ते पारासरा।
जो वाशिष्ठ हैं, वे सात प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. वाशिष्ठ, २. उजायण, ३. जरत्कृष्ण, ४. व्याघ्रपत्य, ५. कौण्डिन्य, ६. संज्ञी, ७. पाराशर (३७)। नय-सूत्र
३८- सत्त मूलणया पण्णत्ता, तं जहा—णेगमे, संगहे, ववहारे, उज्जुसुते, सद्दे, समभिरूढे, एवंभूते।
मूल नय सात कहे गये हैं, जैसे१. नैगम-भेद और अभेद को ग्रहण करने वाला नय। २. संग्रह- केवल अभेद को ग्रहण करने वाला नय। ३. व्यवहार— केवल भेद को ग्रहण करने वाला नय। . ४. ऋजुसूत्र– वर्तमान क्षणवर्ती पर्याय को वस्तु रूप में स्वीकार करने वाला नय। ५. शब्द-भिन्न-भिन्न लिंग, वचन, कारक आदि के भेद से वस्तु में भेद मानने वाला नय। ६. समभिरूढ़- लिंगादि का भेद न होने पर भी पर्यायवाची शब्दों के भेद से वस्तु को भिन्न मानने
वाला नय। ७. एवम्भूत- वर्तमान क्रिया-परिणत वस्तु को ही वस्तु मानने वाला नय (३८)।