Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
स्वरमंडल-सूत्र
३९- सत्त सरा पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथा
सजे रिसभे गंधारे, मज्झिमे पंचमे सरे ।
धेवते चेव णेसादे, सरा सत्त वियाहिता ॥१॥ स्वर सात कहे गये हैं, जैसे१. षड्ज, २. ऋषभ, ३. गान्धार, ४. मध्यम, ५. पंचम, ६. धैवत,७. निषाद। विवेचन१. षड्ज– नासिका, कण्ठ, उरस, तालू, जिह्वा और दन्त इन छह स्थानों से उत्पन्न होने वाला स्वर 'स'। २. ऋषभ— नाभि से उठकर कण्ठ और शिर से समाहत होकर ऋषभ (बैल) के समान गर्जना करने वाला
स्वर-'रे'। ३. गान्धार— नाभि से समुत्थित एवं कण्ठ और शीर्ष से समाहत तथा नाना प्रकार की गन्धों को धारण करने
वाला स्वर—'ग'। ४. मध्यम- नाभि से उठकर वक्ष और हृदय से समाहत होकर पुनः नाभि को प्राप्त महानाद 'म'। शरीर
के मध्य भाग से उत्पन्न होने के कारण यह मध्यम स्वर कहा जाता है। ५. पंचम– नाभि, वक्ष, हृदय, कण्ठ और शिर इन पांच स्थानों से उत्पन्न होने वाला स्वर- 'प'। ६. धैवत- पूर्वोक्त सभी स्वरों का अनुसन्धान करने वाला- 'ध'। ७. निषाद- सभी स्वरों को समाहित करने वाला स्वर—'नी'। ४०- एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा
सजं तु अग्गजिब्भाए, उरेण रिसभं सरं । कंठुग्गतेण गंधारं मज्झजिब्भाए मज्झिमं ॥१॥ णासाए पंचमं बूया, दंतोद्वेण य धेवतं ।
मुद्धाणेण य णेसादं, सरट्ठाणा वियाहिता ॥ २॥ इन सात स्वरों के सात स्वर-स्थान कहे गये हैं, जैसे१. षड्ज का स्थान- जिह्वा का अग्रभाग। २. ऋषभ का स्थान- उरस्थल। ३. गान्धार का स्थान-कण्ठ। ४. मध्यम का स्थान-जिह्वा का मध्य भाग। ५. पंचम का स्थान- नासा। ६. धैवत का स्थान- दन्त-ओष्ठ-संयोग। ७. निषाद का स्थान-शिर (४०)।