Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
२. अहेतु से नहीं देखता है। ३. अहेतु से श्रद्धा नहीं करता है। ४. अहेतु से प्राप्त नहीं करता है। ५. अहेतुक छद्मस्थमरण से मरता है (८०)।
८१- पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा अहेउं जाणति, जाव (अहेउं पासति, अहेउं बुज्झति, अहेउं अभिगच्छति), अहेउं केवलिमरणं मरति।
पुनः पांच अहेतु कहे गये हैं, जैसे१. अहेतु को जानता है। २. अहेतु को देखता है। ३. अहेतु की श्रद्धा करता है। ४. अहेतु को प्राप्त करता है। ५. अहेतुक केवलि-मरण मरता है (८१)।
८२- पंच अहेऊ पण्णत्ता, तं जहा—अहेउणा जाणति, जाव (अहेउणा पासति, अहेउणा बुज्झति, अहेउणा अभिगच्छति), अहेउणा केवलिमरणं मरति।
पुनः पांच अहेतु कहे गये हैं, जैसे१. अहेतु से जानता है। २. अहेतु से देखता है। ३. अहेतु से श्रद्धा करता है। ४. अहेतु से प्राप्त करता है। ५. अहेतुक केवलि-मरण मरता है (८२)।
विवेचन– उपर्युक्त आठ सूत्रों में से आरम्भ के चार सूत्र हेतु-विषयक हैं और अन्तिम चार सूत्र अहेतुविषयक हैं। जिसका साध्य के साथ अविनाभाव सम्बन्ध निश्चित रूप से पाया जाता है, ऐसे साधन को हेतु कहते हैं। जैसे- अग्नि के होने पर ही धूम होता है और अग्नि के अभाव में धूम नहीं होता है, अतः अग्नि और धूम का अविनाभाव सम्बन्ध है। जिस किसी अप्रत्यक्ष स्थान से धूम उठता हुआ दिखता है, तो निश्चित रूप से यह ज्ञात हो जाता है कि उस अप्रत्यक्ष स्थान पर अग्नि अवश्य है। यहां पर जैसे धूम अग्नि का साधक हेतु है, इसी प्रकार जिस किसी भी पदार्थ का जो भी अविनाभावी हेतु होता है, उसके द्वारा उस पदार्थ का ज्ञान नियम से होता है। इसे ही । अनुमानप्रमाण कहते हैं।
पदार्थ दो प्रकार के होते हैं हेतुगम्य और अहेतुगम्य। दूर देश स्थित जो अप्रत्यक्ष पदार्थ हेतु से जाने जाते हैं, उन्हें हेतुगम्य कहते हैं। किन्तु जो पदार्थ सूक्ष्म हैं, देशान्तरित (सुमेरु आदि) और कालान्तरित (राम-रावण आदि) हैं, जिनका हेतु से ज्ञान संभव नहीं हैं, जो केवल आप्त पुरुषों के वचनों से ही ज्ञात किये जाते हैं, उन्हें अहेतुगम्य अर्थात् आगमगम्य कहा जाता है। जैसे—धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि अरूपी पदार्थ केवल