Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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षष्ठस्थान
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३. श्रेणिचारण— पर्वतश्रेणि आदि का स्पर्श किये बिना ऊपर गमन करने वाले। ४. फलचारण- वृक्षों के फलों को स्पर्श किये बिना ऊपर गमन करने वाले। ५. पुष्पचारण– वृक्षों के पुष्पों को स्पर्श किये बिना ऊपर गमन करने वाले। ६. तन्तुचारण— मकड़ी के तन्तुओं को स्पर्श किये बिना उनके ऊपर चलने वाले। ७. जलचारण- जल को स्पर्श किये बिना उसके ऊपर चलने वाले। ८. अंकुरचारण- वनस्पति के अंकुरों को स्पर्श किये बिना ऊपर चलने वाले। ९. बीजचारण- बीजों को स्पर्श किये बिना उनके ऊपर चलने वाले। १०. धूमचारण- धूम का स्पर्श किये बिना उसकी गति के साथ चलने वाले।
इसी प्रकार वायुचारण, नीहारचारण, जलदचारण आदि अनेक प्रकार के चारणऋद्धि वालों की भी सूचना की गई है।
आकाशगामिऋद्धि-पर्यङ्कासन से बैठे हुए, या खड्गासन से अवस्थित रहते हुए पाद-निक्षेप के बिना ही विविध आसनों से आकाश में विहार करने वालों को आकाशगामिऋद्धि वाला बताया गया है।
विक्रियाऋद्धि के अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, वशित्व, ईशित्व, अप्रतिघात, अन्तर्धान, कामरूपित्व आदि अनेक भेद बताये गये हैं। • तपऋद्धि के उग्र, दीप्त, तप्त, महाघोर, तपोधोर, पराक्रमघोर और ब्रह्मचर्य, ये सात भेद बताये गये हैं।
बलऋद्धि के मनोबली, वचनबली और कायबली, ये तीन भेद हैं। औषधऋद्धि के आठ भेद हैं—आमर्श, रवेल (श्लेष्म), जल्ल, मल, विट्, सर्वोषधि, आस्यनिर्विष, दृष्टिनिर्विष। रसऋद्धि के छह भेद हैं क्षीरस्रवी, मधुस्रवी, सर्पिःस्रवी, अमृतस्रवी, आस्यनिर्विष और दृष्टिनिर्विष। क्षेत्रऋद्धि के दो भेद हैं—अक्षीण महानस और अक्षीण महालय।
उक्त सभी ऋद्धियों का चामत्कारिक विस्तृत वर्णन तिलोयपण्णत्ती, धवलाटीका और तत्त्वार्थराजवार्तिक में किया गया है। विशेषावश्यकभाष्य में २८ ऋद्धियों का वर्णन किया गया है। कालचक्र-सूत्र
२३ – छव्विहा ओसप्पिणी पण्णत्ता, तं जहा—सुसम-सुसमा, (सुसमा, सुसम-दूसमा, दूसम-सुसमा, दूसमा), दूसम-दूसमा।
अवसर्पिणी छह प्रकार की कही गई है, जैसे१. सुषम-सुषमा, २. सुषमा, ३. सुषम-दुःषमा, ४. दुःषम-सुषमा, ५. दुःषमा, ६. दुःषम-दुःषमा (२३)।
२४- छव्विहा उस्सप्पिणी पण्णत्ता, तं जहा–दुस्सम-दुस्समा, दुस्समा, (दुस्सम-सुसमा, सुसम-दुस्समा, सुसमा ] सुसम-सुसमा।
उत्सर्पिणी छह प्रकार की कही गई है, जैसे१. दुःषम-दुःषमा, २. दुःषमा, ३. दुःषम-सुषमा, ४. सुषम-दुःषमा, ५. सुषमा, ६. सुषम-सुषमा (२४)। २५- जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए मणुया