Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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षष्ठस्थान
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क्षुद्रप्राण-सूत्र
६८- छव्विहा खुड्डा पाणा पण्णत्ता, तं जहा–बेंदिया, तेइंदिया, चउरिदिया, संमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणिया, तेउकाइया, वाउकाइया।
क्षुद्र-प्राणी छह प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. द्वीन्द्रिय, २. त्रीन्द्रिय, ३. चतुरिन्द्रिय, ४. सम्मूछिम पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक, ५. तेजस्कायिक,
६. वायुकायिक (६८)। गोचरचर्या-सूत्र
६९- छव्विहा गोयरचरिया पण्णत्ता, तं जहा—पेडा, अद्धपेडा, गोमुक्तिया, पतंगवीहिया, संबुक्कावट्टा, गंतुंपच्चागता।
गोचर-चर्या छह प्रकार की कही गई है, जैसे१. पेटा — गाँव के चार विभाग करके गोचरी करना। २. अर्धपेटा— गाँव के दो विभाग करके गोचरी करना। ३. गोमूत्रिका- घरों की आमने-सामने वाली दो पंक्तियों में इधर से उधर आते-जाते गोचरी करना। ४. पतंगवीथिका— पतंगा की उड़ान के समान बिना क्रम के एक घर से गोचरी लेकर एकदम दूरवर्ती घर से गोचरी लेना। ५. शम्बूकावत- शंख के आवर्त (गोलाकार) के समान घरों का क्रम बनाकर गोचरी लेना। ६. गत्वा-प्रत्यागता— प्रथम पंक्ति के घरों में क्रम से आद्योपान्त गोचरी करके द्वितीय पंक्ति के घरों
में क्रमशः गोचरी करते हुए वापिस आना (६९)। महानरक-सूत्र
७०- जंबुद्वीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए छ अवक्कंतमहाणिरया पण्णत्ता, तं जहा -लोले, लोलुए, उद्दड्डे, णिहड्डे जरए, पज्जरए।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण भाग में इस रत्नप्रभा पृथ्वी में छह अपक्रान्त (अतिनिकृष्ट) महानरक कहे गये हैं, जैसे
१. लोल, २. लोलुप, ३. उद्दग्ध, ४. निर्दग्ध, ५. जरक, ६. प्रजरक (७०)।
७१- चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए छ अवक्कंतमहाणिरया पण्णत्ता, तं जहा—आरे, वारे, मारे, रोरे, रोरुए, खाडखडे ।
चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में छह अपक्रान्त महानरक कहे गये हैं, जैसे१. आर, २. बार, ३. मार, ४. रोर, ५. रोरुक, ६. खाडखड (७१)।