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स्थानाङ्गसूत्रम् वैसा ही धातकीषण्ड द्वीप में भी जानना चाहिए।
इसी प्रकार धातकीषण्ड द्वीप के पश्चिमार्ध में तथा पुष्करवरद्वीपार्ध के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी जम्बूद्वीप के समान सर्व वर्णन जानना चाहिए (९४)। ऋतु-सूत्र
९५-छ उदू पण्णत्ता, तं जहा—पाउसे, वरिसारत्ते, सरए, हेमंते, वसंते, गिम्हे। ऋतुएँ छह कही गई हैं, जैसे१. प्रावृट् ऋतु- आषाढ और श्रावण मास। २. वर्षा ऋतु- भाद्रपद और आश्विन मास। ३. शरद् ऋतु- कार्तिक और मृगशिर मास । ४. हेमन्त ऋतु- पौष और माघ मास। ५. वसन्त ऋतु- फाल्गुन और चैत्र मास।
६. ग्रीष्म ऋतु- वैशाख और ज्येष्ठ मास (९५)। अवमरात्र-सूत्र
९६—छ ओमरत्ता पण्णत्ता, तं जहा—ततिए पव्वे, सत्तमे पव्वे, एक्कारसमे पव्वे, पण्णरसमे पव्वे, एगूणवीसइमे पव्वे, तेवीसइमे पव्वे।
छह अवमरात्र (तिथि-क्षय) कहे गये हैं, जैसे१. तीसरा पर्व- आषाढ कृष्णपक्ष में। २. सातवाँ पर्व- भाद्रपद कृष्णपक्ष में। ३. ग्यारहवाँ पर्व- कार्तिक कृष्णपक्ष में। ४. पन्द्रहवाँ पर्व- पौष कृष्णपक्ष में।। ५. उन्नीसवाँ पर्व- फाल्गुन कृष्णपक्ष में।
६. तेईसवाँ पर्व- वैशाख कृष्णपक्ष में (९६)। अतिरात्र-सूत्र
९७– छ अतिरत्ता पण्णत्ता, तं जहा—चउत्थे पव्वे, अट्ठमे पव्वे, दुवालसमे पव्वे, सोलसमे पव्वे, वीसइमे पव्वे, चउवीसइमे पव्वे।
छह अतिरात्र (तिथिवृद्धि वाले पर्व) कहे गये हैं, जैसे१. चौथा पर्व- आषाढ शुक्लपक्ष में। २. आठवाँ पर्व-भाद्रपद शुक्लपक्ष में। ३. बारहवाँ पर्वकार्तिक शुक्लपक्ष में। ४. सोलहवाँ पर्व- पौष शुक्लपक्ष में।