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स्थानाङ्गसूत्रम् का नियम से बन्ध होता है। इसी नियम की सूचना प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ प्रकार से मिलती है। इसको सरल शब्दों में इस प्रकार का जानना चाहिए
कोई जीव किसी समय देवायु कर्म का बन्ध कर रहा है, तो उसी समय आयु के साथ ही पंचेन्द्रिय जातिनामकर्म का, देवगतिनामकर्म का और वैक्रियशरीरनामकर्म का भी नियम से बन्ध होता है तथा देवायु के बन्ध के साथ ही बंधने वाले पंचेन्द्रियजातिनामकर्म देवगतिनामकर्म और वैक्रियशरीरनामकर्म का स्थितिबन्ध, अनुभाग और प्रदेशबन्ध भी करता है। ___ आगे कहे जाने वाले दो सूत्र उक्त नियम के ही समर्थक हैं।
११७– णेरइयाणं छविहे आउयबंधे पण्णत्ते, तं जहा—जातिणामणिहत्ताउए, (गतिणामणिहत्ताउए, ठितिणामणिहत्ताउए, ओगाहणाणामणिहत्ताउए, पएसणामणिहत्ताउए), अणुभागणामणिहत्ताउए।
नारकी जीवों का आयुष्क बन्ध छह प्रकार का कहा गया है, जैसे१. जातिनामनिधत्तायु- नारकायुष्क के बन्ध के साथ पंचेन्द्रियजातिनामकर्म का नियम से बंधना। २. गतिनामनिधत्तायु- नारकायुष्क के बन्ध के साथ नरकगति का नियम से बंधना। ३. स्थितिनामनिधत्तायु- नारकायुष्क के बन्ध के साथ स्थिति का नियम से बंधना। ४. अवगाहनानामनिधत्तायु- नारकायुष्क के बन्ध के साथ वैक्रियशरीरनामकर्म का नियम से बंधना। ५. प्रदेशनामनिधत्तायु- नारकायुष्क के बंध के साथ प्रदेशों का नियम से बंधना। ६. अनुभागनामनिधत्तायु- नारकायुष्क के बंध के साथ अनुभाग का नियम से बंधना (११७) । ११८- एवं जाव वेमाणियाणं।
इस प्रकार वैमानिक तक के सभी दण्डकों के जीवों में आयुष्यकर्म का बन्ध छह प्रकार का जानना चाहिए (११८)। परभविक-आयुर्बन्ध-सूत्र
११९–णेरइया णियमा छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पगरेंति।
भुज्यमान आयु के छह मास के अवशिष्ट रहने पर नारकी जीव नियम से परभव की आयु का बन्ध करते हैं (११९)।
१२०- एवं असुरकुमारावि जाव थणियकुमारा।
इसी प्रकार असुरकुमार भी तथा स्तनितकुमार तक के सभी भवनपति देव भी छह मास आयु के अवशिष्ट रहने पर नियम से परभव की आयु का बन्ध करते हैं (१२)।
- १२१– असंखेजवासाउया सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिया णियमं छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पगरेंति।
छह मास आयु के अवशिष्ट रहने पर असंख्येयवर्षायुष्क संज्ञि-पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव नियम से परभव