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स्थानाङ्गसूत्रम्
देव-सूत्र
१०४– सणंकुमार-माहिंदेसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिजगा सरीरगा उक्कोसेणं छ रयणीओ उडे उच्चत्तेणं पण्णत्ता।
सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प के देवों के भवधारणीय शरीर छह रात्निप्रमाण उत्कृष्ट ऊँचाई वाले कहे गये हैं (१०८)। भोजन-परिणाम-सूत्र
१०९- छव्विहे भोयणपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा—मणुण्णे, रसिए, पीणणिजे, बिंहणिजे, मयणिजे, दप्पणिजे।
भोजन का परिणाम या विपाक छह प्रकार का कहा गया है, जैसे१. मनोज्ञ— मन में आनन्द उत्पन्न करने वाला। २. रसिक-विविधरस-युक्त व्यंजन वाला। ३. प्रीणनीय— रस-रक्तादि धातुओं में समता लाने वाला। ४. बृंहणीय— रस, मांसादि, धातुओं को बढ़ाने वाला। ५. मदनीय-कामशक्ति को बढ़ाने वाला।
६. दर्पणीय- शरीर का पोषण करने वाला, उत्साहवर्धक (१०९)। विषपरिणाम-सूत्र
११०– छविहे विसपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा—डक्के, भुत्ते, णिवतिते, मंसाणुसारी, सोणिताणुसारी, अट्टिमिंजाणुसारी।
विष का परिणाम या विपाक छह प्रकार का कहा गया है, जैसे१. दष्ट-किसी विषयुक्त जीव के द्वारा काटने पर प्रभाव डालने वाला। २. भुक्त–खाये जाने पर प्रभाव डालने वाला। ३. निपतित- शरीर के बाहिरी भाग से स्पर्श होने पर प्रभाव डालने वाला। ४. मांसानुसारी-मांस तक की धातुओं पर प्रभाव डालने वाला। ५. शोणितानुसारी- रक्त तक की धातुओं पर प्रभाव डालने वाला।
६. अस्थि-मज्जानुसारी— अस्थि और मज्जा तक प्रभाव डालने वाला (११०)। पृष्ठ-सूत्र
१११– छव्विहे पढे पण्णत्ते, तं जहा—संसयपट्टे, वुग्गहपटे, अणुजोगी, अणुलोमे, तहणाणे, अतहणाणे।
प्रश्न छह प्रकार के कहे गये हैं, जैसे