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स्थानाङ्गसूत्रम् विमान-प्रस्तट-सूत्र
७२- बंभलोगे णं कप्पे छ विमाण-पत्थडा पण्णत्ता, तं जहा—अरए, विरए, णीरए, णिम्मले, वितिमिरे, विसुद्धे।
ब्रह्मलोक कल्प में छह विमान-प्रस्तट कहे गये हैं, जैसे
१. अरजस्, २. विरजस्, ३. नीरजस् ४. निर्मल, ५. वितिमिर, ५. विशुद्ध (७२)। नक्षत्र-सूत्र
७३- चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो छ णक्खत्ता पुव्वंभागा समखेत्ता तीसतिमुहुत्ता पण्णत्ता, तं जहा—पुव्वाभद्दवया, कत्तिया, महा, पुव्वफग्गुण, मूलो, पुव्वासाढा।
ज्योतिषराज, ज्योतिषेन्द्र चन्द्र के पूर्वभागी, समक्षेत्री और तीस मुहूर्त तक भोग करने वाले छह नक्षत्र कहे गये हैं, जैसे
१. पूर्वभाद्रपद, २. कृत्तिका, ३. मेघा, ४. पूर्वफाल्गुनी, ५. मूल, ६. पूर्वाषाढा (७३)।
७४- चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो छ णक्खत्ता णत्तंभागा अवड्डक्खत्ता पण्णरसमुहुत्ता, तं जहा—सयभिसया, भरणी, भद्दा, अस्सेसा, साती, जेट्ठा।
ज्योतिष्कराज, ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र के अपार्धक्षेत्री नक्ताभागी (रात्रिभोगी) पन्द्रह मुहूर्त तक भोग करने वाले छह नक्षत्र कहे गये हैं, जैसे
१. शतभिषक्, २. भरणी, ३. भद्रा, ४. आश्लेषा, ५. स्वाति, ६. ज्येष्ठा (७४)। .
७५— चंदस्स णं जोइसिंदस्स जोतिसरण्णो छ णक्खत्ता, उभयभागा दिवड्डखेत्ता पणयालीसमुहुत्ता पण्णत्ता, तं जहा–रोहिणी, पुणव्वसू, उत्तराफग्गुणी, विसाहा, उत्तरासाढा, उत्तराभद्दवया ।
__ ज्योतिष्कराज, ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र के उभययोगी द्वयर्धयोगी और पैंतालीस मुहूर्त तक भोग करने वाले छह नक्षत्र कहे गये हैं, जैसे
१. रोहिणी, २. पुनर्वसु, ३. उत्तरफाल्गुनी, ४. विशाखा, ५. उत्तराषाढा, ६. उत्तराभाद्रपद (७५)। इतिहास-सूत्र
७६– अभिचंदे णं कुलकरे छ धणुसयाई उडु उच्चत्तेणं हुत्था। अभिचन्द्र कुलकर छह सौ धनुष ऊँचे शरीर वाले थे (७६)। ७७-भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी छ पुव्वसतसहस्साइं महाराया हुत्था। चातुरन्त चक्रवर्ती भरत राजा छह लाख पूर्वां तक महाराज पद पर रहे (७७)।
७८- पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणियस्स छ सता वादीणं सदेवमणुयासुराए परिसाए अपराजियाणं संपया होत्था। .