Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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षष्ठस्थान
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जिभिदियसाते, फासिंदियसाते), णोइंदियसाते।
सात (सुख) छह प्रकार का कहा गया है, जैसे
१. श्रोत्रेन्द्रिय-सात, २. चक्षुरिन्द्रिय-सात, ३. घ्राणेन्द्रिय-सात, ४. रसनेन्द्रिय-सात, ५. स्पर्शनेन्द्रिय-सात, ६. नोइन्द्रिय-सात (१७)।
१८- छव्विहे असाते पण्णत्ते, तं जहा सोतिंदियअसाते, (चक्खिदियअसाते, घाणिंदियअसाते, जिभिदियअसाते, फासिंदियअसाते,) णोइंदियअसाते।
असात (दुःख) छह प्रकार का कहा गया है, जैसे
१. श्रोत्रेन्द्रिय-असात, २. चक्षुरिन्द्रिय-असात, ३. घाणेन्द्रिय-असात, ४. रसनेन्द्रिय-असात, ५. स्पर्शनेन्द्रियअसात, ६. नोइन्द्रिय-असात (१८)। प्रायश्चित्त-सूत्र
१९– छव्विहे पायच्छित्ते पण्णत्ते, तं जहा—आलोयणारिहे, पडिक्कमणारिहे, तदुभयारिहे, विवेगारिहे, विउस्सग्गारिहे, तवारिहे। . प्रायश्चित्त छह प्रकार का कहा गया है, जैसे
१. आलोचना-योग्य, २. प्रतिक्रमण-योग्य, ३. तदुभय-योग्य, ४. विवेक-योग्य, ५. व्युत्सर्ग-योग्य, ६. तपयोग्य (१९)।
विवेचन– यद्यपि तत्त्वार्थसूत्र में प्रायश्चित्त के नौ तथा प्रायश्चित्तसूत्र आदि में दश भेद बताये गये हैं, किन्तु यहां छह का अधिकार होने से छह ही भेद कहे गये हैं। किसी साधारण दोष की शुद्धि गुरु के आगे निवेदन करने से—आलोचना मात्र से हो जाती है। इससे भी बड़ा दोष लगता है, तो प्रतिक्रमण से मेरा दोष मिथ्या हो—(मिच्छा मि दुक्कडं) ऐसा बोलने से उसकी शुद्धि हो जाती है। कोई दोष और भी बड़ा हो तो उसकी शुद्धि तदुभय से अर्थात् आलोचना और प्रतिक्रमण दोनों से होती है। कोई और भी बड़ा दोष है, तो उसकी शुद्धि विवेक नामक प्रायश्चित्त से होती है। इस प्रायश्चित्त में दोषी व्यक्ति को अपने भक्त-पान और उपकरणादि के पृथक् विभाजन का दण्ड दिया जाता है। यदि इससे भी गुरुतर दोष होता है, तो नियत समय तक कायोत्सर्ग करने रूप व्युत्सर्ग प्रायश्चित्त से उसकी शुद्धि होती है। और यदि इससे भी गुरुतर अपराध है तो उसकी शुद्धि के लिए चतुर्थभक्त, षष्ठभक्त आदि तप का प्रायश्चित्त दिया जाता है। आरांश यह है कि जैसा दोष होता है, उसके अनुरूप ही प्रायश्चित्त देने का विधान है। यह बात छहों पदों के साथ प्रयुक्त 'अर्ह' (योग्य) पद से सूचित की गई है। मनुष्य-सूत्र
२०– छव्विहा मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा जंबूदीवगा, धायइसंडदीवपुरथिमद्धगा, धायइसंडदीवपच्चत्थिमद्धगा, पुक्खरवरदीवड्डपुरस्थिमद्धगा, पुक्खरवरदीवड्डपच्चत्थिमद्धगा, अंतरदीवगा।
अहवा–छव्विहा मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा—संमुच्छिममणुस्सा-कम्मभूमगा, अकम्मभूमगा, अंतरदीवगा, गब्भवक्कंतिअमणुस्सा कम्मभूमगा, अकम्मभूमगा, अंतरदीवगा।