Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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षष्ठस्थान
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जीव-सूत्र
११- छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा—आभिणिबोहियणाणी, (सुयणाणी, ओहिणाणी, मणपज्जवणाणी), केवलणाणी, अण्णाणी।
___ अहवा–छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा—एगिदिया, (बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया,) पंचिंदिया, अणिंदिया।
अहवा–छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा–ओरालियसरीरी, वेउब्वियसरीरी, आहारगसरीरी, तेअगसरीरी, कम्मगसरीरी, असरीरी।
सर्व जीव छह प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. आभिनिबोधिकज्ञानी, २. श्रुतज्ञानी, ३. अवधिज्ञानी, ४. मनःपर्यवज्ञानी, ५. केवलज्ञानी और ६. अज्ञानी (मिथ्याज्ञानी)।
अथवा सर्व जीव छह प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. एकेन्द्रिय, २. द्वीन्द्रिय, ३. त्रीन्द्रिय, ४. चतुरिन्द्रिय, ५. पंचेन्द्रिय, ६. अनिन्द्रिय (सिद्ध)। अथवा सर्व जीव छह प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. औदारिकशरीरी, २. वैक्रियशरीरी, ३. आहारकशरीरी, ४. तैजसशरीरी, ५. कार्मणशरीरी और ६. अशरीरी (मुक्तात्मा) (११)। तृणवनस्पति-सूत्र
१२- छव्विहा तणवणस्सतिकाइया पण्णत्ता, तं जहा–अग्गबीया, मूलबीया, पोरबीया, खंधबीया, बीयरुहा, संमुच्छिमा।
तृण-वनस्पतिकायिक जीव छह प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. अग्रबीज, २. मूलबीज, ३. पर्वबीज, ४. स्कन्धबीज, ५. बीजरुह और ६. सम्मूछिम (१२)। नो-सुलभ-सूत्र
१३- छट्ठाणाई सव्वजीवाणं णो सुलभाई भवंति, तं जहा—माणुस्सए भवे। आरिए खेत्ते जम्मं । सुकुले पच्चायाती। केवलीपण्णत्तस्स धम्मस्स सवणता। सुतस्स वा सद्दहणता। सद्दहितस्स वा पत्तितस्स वा रोइतस्स वा सम्मं कारणं फासणता।
छह स्थान सर्व जीवों के लिए सुलभ नहीं हैं, जैसे
१. मनुष्य भव, २. आर्य क्षेत्र में जन्म, ३. सुकुल में आगमन, ४. केवलिप्रज्ञप्त धर्म का श्रवण, ५. सुने हुए धर्म का श्रद्धान और ६. श्रद्धान किये, प्रतीति किये और रुचि किये गये धर्म का काय से सम्यक् स्पर्शन (आचरण) (१३)।