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स्थानाङ्गसूत्रम्
छ धणुसहस्साई उड्डमुच्चत्तेणं हुत्था, छच्च अद्धपलिओवमाइं परमाउं पालयित्था।
___ जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरत-ऐरवत क्षेत्र की अतीत उत्सर्पिणी के सुषम-सुषमा काल में मनुष्यों की ऊँचाई छह हजार धनुष की थी और उनकी उत्कृष्ट आयु छह अर्ध पल्योपम अर्थात् तीन पल्योपम की थी (२५)।
२६- जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए ( मणुया छ धणुसहस्साई उड्डमुच्चत्तेणं पण्णत्ता, छच्च अद्धपलिओवमाइं परमाउं पालयित्था।)
___ जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरत-ऐरवत क्षेत्र की इसी अवसर्पिणी के सुषम-सुषमा काल में मनुष्यों की ऊँचाई छह हजार धनुष की थी और उनकी छह अर्धपल्योपम की उत्कृष्ट आयु थी (२६)।
२७ - जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए (मणुया छ धणुसहस्साइं उड्डमुच्चत्तेणं भविस्संति), छच्च अद्धपलिओवमाइं परमाउं पालइस्संति।।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरत-ऐरवत क्षेत्र की आगामी उत्सर्पिणी के सुषम-सुषमा काल में मनुष्यों की ऊँचाई छह हजार धनुष होगी और वे छह अर्धपल्योपम (तीन पल्योपम) उत्कृष्ट आयु का पालन करेंगे (२७)।
२८– जंबुद्दीवे दीवे देवकुरु-उत्तरकुरुकुरासु मणुया छ धणुस्साहस्साइं उठें उच्चत्तेणं पण्णत्ता, छच्च अद्धपलिओवमाइं परमाउं पालेंति।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में देवकुरु और उत्तरकुरु के मनुष्यों की ऊँचाई छह हजार धनुष की कही गई है और वे छह अर्धपल्योपम उत्कृष्ट आयु का पालन करते हैं (२८)।
२९- एवं धायइसंडदीवपुरथिमद्धे चत्तारि आलावगा जाव पुक्खरवरदीवड्डपच्चत्थिमद्धे चत्तारि आलावगा।
इसी प्रकार धातकीषण्ड द्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध, तथा अर्धपुष्करवरद्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी मनुष्यों की ऊँचाई छह हजार धनुष और उत्कृष्ट आयु छह अर्धपल्योपम की जम्बूद्वीप के चारों आलापकों के समान जानना चाहिए (२९)। संहनन-सूत्र
३०- छव्हेि संघयणे पण्णत्ते, तं जहा—वइरोसभ-णाराय-संघयणे, उसभ-णाराय-संघयणे णाराय-संघयणे, अद्धणाराय-संघयणे, खीलिया-संघयणे, छेवट्ट-संघयणे।
संहनन छह प्रकार का कहा गया है, जैसे१. वज्रर्षभनाराचसंहनन— जिस शरीर में हड्डियां, वज्रकीलिका, परिवेष्टनपट्ट और उभयपार्श्व मर्कटबन्ध से
युक्त हों।
२. ऋषभनाराचसंहनन— जिस शरीर की हड्डियां वज्रकीलिका के बिना शेष दो से युक्त हों। ३. नाराचसंहनन— जिस शरीर की हड्डियां दोनों ओर से केवल मर्कटबन्ध युक्त हों। ४. अर्धनाराचसंहनन— जिस शरीर की हड्डियां एक ओर मर्कटबन्ध वाली और दूसरी ओर कीलिका वाली हों।