Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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षष्ठ स्थान
दूसरे सूत्र में कुल आर्यों के छह भेद बताये गये हैं, उनका विवरण इस प्रकार है—
१. उग्र— भगवान् ऋषभदेव ने आरक्षक या कोट्टपाल के रूप में जिनकी नियुक्ति की थी, वे उग्र नाम से प्रसिद्ध हुए । उनकी सन्तान भी उग्रवंशीय कहलाने लगी।
२. भोज— गुरुस्थानीय क्षत्रियों के वंशज ।
३. राजन्य — मित्रस्थानीय क्षत्रियों के वंशज ।
४. इक्ष्वाकु — भगवान् ऋषभदेव के वंशज ।
५. ज्ञात —— भगवान् महावीर के वंशज ।
६. कौरव — कुरुवंश में उत्पन्न शान्तिनाथ तीर्थंकर के वंशज ।
इन छहों कुलार्यों का सम्बन्ध क्षत्रियों से रहा है।
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लोकस्थिति-सूत्र
३६ - छव्विहा लोगट्ठिती पण्णत्ता, तं जहा— आगासपतिट्ठिते वाए, वातपतिट्ठिते उदही, उदधिपतिट्ठिता पुढवी, पुढविपतिट्ठिता तसा थावरा पाणा, अजीवा जीवपतिट्ठिता, जीवा कम्मपतिट्ठिता ।
लोक की स्थिति छह प्रकार की कही गई है, जैसे
१. वात (तनु वायु ) आकाश पर प्रतिष्ठित है ।
२. उदधि (घनोदधि) तनु वात पर प्रतिष्ठित है।
३. पृथिवी घनोदधि पर प्रतिष्ठित है।
४. त्रस-स्थावर प्राणी पृथिवी पर प्रतिष्ठित हैं।
५. अजीव जीव पर प्रतिष्ठित है ।
६. जीव कर्मों पर प्रतिष्ठित है (३६) ।
दिशा - सूत्र
३७– छद्दिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा— पाईणा, पडीणा, दाहिणा, उदीणा, उड्डा, अधा । दिशाएँ छह कही गई हैं, जैसे—
१. प्राची (पूर्व) २. प्रतीची (पश्चिम) ३. दक्षिण, ४. उत्तर, ५. ऊर्ध्व और ६. अधोदिशा (३७) ।
३८– छहिं दिसाहिं जीवाणं गती पवत्तति, तं जहा— पाईणाए, (पडीणाए, दाहिणाए, उदीणाए, उड्ढाए), अधाए ।
छहों दिशाओं में जीवों की गति होती है अर्थात् मरकर जीव छहों दिशाओं में जाकर उत्पन्न होते हैं, जैसे१. पूर्व दिशा में, २. पश्चिम दिशा में, ३. दक्षिण दिशा में, ४. उत्तर दिशा में, ५. ऊर्ध्व दिशा में और ६. अधोदिशा में (३८) ।
३९— (छहिं दिसाहिं जीवाणं ) आगई वक्कंती आहारे वुड्डी णिवुड्डी विगुव्वणा गतिपरियाए समुग्धाते कालसंजोगे दंसणाभिगमे णाणाभिगमे जीवाभिगमे अजीवाभिगमे (पण्णत्ते, तं