Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पंचम स्थान द्वितीय उद्देश परिज्ञा-सूत्र
१२३– पंचविहा परिण्णा पण्णत्ता, तं जहा—उवहिपरिण्णा, उवस्सयपरिण्णा, कसायपरिण्णा, जोगपरिण्णा, भत्तपाणपरिण्णा।
परिज्ञा पांच प्रकार की कही गई है, जैसे१. उपधिपरिज्ञा, २. उपाश्रयपरिज्ञा, ३. कषायपरिज्ञा, ४. योगपरिज्ञा, ५. भक्तपानपरिज्ञा (१२३)।
विवेचन- वस्तुस्वरूप के ज्ञानपूर्वक प्रत्याख्यान या परित्याग को परिज्ञा कहते हैं। व्यवहार-सूत्र
१२४- पंचविहे ववहारे पण्णत्ते, तं जहा—आगमे, सुते, आणा, धारणा, जीते। जहा से तत्थ आगमे सिया, आगमेणं ववहारं पट्टवेज्जा। णो से तत्थ आगमे सिया जहा से तत्थ सुते सिया, सुतेणं ववहारं पट्ठवेजा। णो से तत्थ सुते सिया (जहा से तत्थ आणा सिया, आणाए ववहारं पट्ठवेजा। णो से तत्थ आणा सिया जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहारं पट्ठवेजा। णो से तत्थ धारणा सिया) जहा से तत्थ जीते सिया, जीतेणं ववहारं पट्ठवेजा। इच्चेतेहिं पंचहिं ववहारं पट्ठवेजा—आगमेणं (सुतेणं आणाए धारणाए) जीतेणं। जधा-जधा से तत्थ आगमे (सुते आणा धारणा) जीते तधा-तधा ववहारं पट्ठवेजा। से किमाहु भंते! आगमवलिया समणा णिग्गंथा ?
इच्चेतं पंचविधं ववहारं जया-जया जहि-जहिं तया-तया तहिं-तहिं अणिस्सितोवस्सितं सम्म ववहरमाणे समणे णिग्गंथे आणाए आराधए भवति।
व्यवहार पांच प्रकार का कहा गया है, जैसे१. आगमव्यवहार, २. श्रुतव्यवहार, ३. आज्ञाव्यवहार, ४. धारणाव्यवहार, ५. जीतव्यवहार (१२४)। . जहां आगम हो अर्थात् जहां आगम से विधि-निषेध का बोध होता हो वहां आगम से व्यवहार की प्रस्थापना
करे।
जहां आगम न हो, श्रुत हो, वहां श्रुत से व्यवहार की प्रस्थापना करे। जहां श्रुत न हो, आज्ञा हो, वहां आज्ञा से व्यवहार की प्रस्थापना करे। जहां आज्ञा न हो, धारणा हो, वहां धारणा से व्यवहार की प्रस्थापना करे। जहां धारणा न हो, जीत हो, वहां जीत से व्यवहार की प्रस्थापना करे। इन पांचों से व्यवहार की प्रस्थापना करे—१. आगम से, २. श्रुत से, ३. आज्ञा से, ४. धारणा से, ५. जीत से।
जिस समय जहां आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत में से जो प्रधान हो, वहां उसी से व्यवहार की प्रस्थापना करे।
प्रश्न- हे भगवन् ! आगम ही जिनका बल है ऐसे श्रमण-निर्ग्रन्थों ने इस विषय में क्या कहा है ?