Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पंचम स्थान द्वितीय उद्देश
४७३
दंड-सूत्र
१११- पंच दंडा पण्णत्ता, तं जहा अट्ठादंडे, अणट्ठादंडे, हिंसादंडे, अकस्मादंडे, दिट्ठीविप्परियासियादंडे।
दंड पांच प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. अर्थदण्ड— प्रयोजन-वश अपने या दूसरों के लिए जीव-घात करना। २. अनर्थदण्ड -बिना प्रयोजन जीव-घात करना। ३. हिंसादण्ड–'इसने मुझे मारा था, मार रहा है, या मारेगा' इसलिए हिंसा करना। ४. अकस्माद्दण्ड– अकस्मात् जीव-घात हो जाना।
५. दृष्टिविपर्यासदण्ड— मित्र को शत्रु समझकर दण्डित करना (१११)। क्रिया-सूत्र
११२– पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया, मिच्छादसणवत्तिया।
क्रियाएँ पांच कही गई हैं, जैसे
१. आरम्भिकी क्रिया, २. पारिग्रहिकी क्रिया, ३. मायाप्रत्यया क्रिया, ४. अप्रत्याख्यान क्रिया, ५. मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया (११२)।
११३– मिच्छादिट्ठियाणं णेरइयाणं पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा (आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया), मिच्छादसणवत्तिया।
मिथ्यादृष्टि नारकों के पांच क्रियाएं कही गई हैं, जैसे -
१. आरम्भिकी क्रिया, २. पारिग्रहिकी क्रिया, ३. मायाप्रत्यया क्रिया, ४. अप्रत्याख्यान क्रिया, ५. मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया (११३)।
११४— एवं सव्वेसिं णिरंतरं जाव मिच्छाद्दिट्ठियाणं वेमाणियाणं, णवरं विगलिंदिया मिच्छट्टिी ण भण्णंति। सेसं तहेव। ___ इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि वैमानिकों तक सभी दण्डकों में पांचों क्रियाएं होती हैं । केवल विकलेन्द्रियों के साथ मिथ्यादृष्टि पद नहीं कहना चाहिए, क्योंकि वे सभी मिथ्यादृष्टि ही होते हैं, अतः विशेषण लगाने की आवश्यकता ही नहीं है। शेष सर्व तथैव जानना चाहिए (११४)।
११५-पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तंजहा—काइया, आहिगरणिया, पाओसिया, पारितावणिया, पाणातिवातकिरिया।
पुनः पांच क्रियाएं कही गई हैं, जैसे
१. कायिकी क्रिया, २. आधिकरणिकी क्रिया, ३. प्रादोषिकी क्रिया, ४. पारितापनिकी क्रिया, ५. प्राणातिपातिकी क्रिया (११५)।