Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
११६–णेरइयाणं पंच एवं चेव। एवं—णिरंतरं जाव वेमाणियाणं।
नारकी जीवों में ये ही पांच क्रियाएं होती हैं। इसी प्रकार वैमानिकों तक सभी दण्डकों में ये ही पांच क्रियाएं कही गई हैं (११६)।
११७ – पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—आरंभिया, (पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया), मिच्छादसणवत्तिया।
पुनः पांच क्रियाएं कही गई हैं, जैसे
१. आरम्भिकी क्रिया, २. पारिग्रहिकी क्रिया, ३. मायाप्रत्यया क्रिया, ४. अप्रत्याख्यान क्रिया, ५. मिथ्यादर्शन क्रिया (११७)।
११८- णेरइयाणं पंच किरिया णिरंतरं जाव वेमाणियाणं। नारकी जीवों से लेकर निरन्तर वैमानिक तक सभी दण्डकों में ये पांच क्रियाएं जाननी चाहिए (११८)।
११९- पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा—दिट्ठिया, पुट्ठिया, पाडुच्चिया, सामंतोवणिवाइया, साहत्थिया।
पुनः पांच क्रियाएं कही गई हैं, जैसे
१. दृष्टिजा क्रिया, २. पृष्टिजा क्रिया, ३. प्रातीत्यिकी क्रिया, ४. सामन्तोपनिपातिकी क्रिया, ५. स्वाहस्तिकी क्रिया (११९)।
१२०– एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। नारकी जीवों से लेकर वैमानिक तक सभी दंडकों में ये पांच क्रियाएं जाननी चाहिए (१२०)।
.१२१- पंच किरियाओ, तं जहा—णेसत्थिया, आणवणिया, वेयारणिया, अणाभोगवत्तिया, अणवकंखवत्तिया। एवं जाव वेमाणियाणं।
पुनः पांच क्रियाएं कही गई हैं, जैसे
१. नैसृष्टिकी क्रिया, २. आज्ञापनिकी क्रिया, ३. वैदारणिका क्रिया, ४. अनाभोगप्रत्यया क्रिया, ५. अनवकांक्षप्रत्यया क्रिया।
नारकों से लेकर वैमानिकों तक सभी दण्डकों में ये पांच क्रियाएं जाननी चाहिए (१२१)।
१२२– पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा पेज्जवत्तिया, दोसवत्तिया, पओगकिरिया, समुदाणकिरिया, ईरियावहिया। एवं मणुस्साणवि। सेसाणं णत्थि। , पुनः पांच क्रियाएं कही गई हैं, जैसे१. प्रेयःप्रत्यया क्रिया, २. द्वेषप्रत्यया क्रिया, ३. प्रयोग क्रिया, ४. समुदान क्रिया, ५. ईर्यापथिकी क्रिया।
ये पांचों क्रियाएं मनुष्यों में ही होती हैं, शेष दण्डकों में नहीं होती। (क्योंकि उनमें ईर्यापथिकी क्रिया संभव नहीं है, वह वीतरागी ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें गुणस्थान वाले मनुष्यों के ही होती है) (१२२)।