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स्थानाङ्गसूत्रम्
संवर-असंवर-सूत्र
१३७– पंचविधे संवरे पण्णत्ते, तं जहा—सोतिदियसंवरे, (चक्खिंदियसंवरे, घाणिंदियसंवरे, जिब्भिंदियसंवरे), फासिंदियसंवरे।
संवर पांच प्रकार का कहा गया है, जैसे
१. श्रोत्रेन्द्रिय-संवर, २. चक्षुरिन्द्रिय-संवर, ३. घ्राणेन्द्रिय-संवर, ४. रसनेन्द्रिय-संवर, ५. स्पर्शनेन्द्रिय-संवर (१३७)।
१३८ - पंचविधे असंवरे पण्णत्ते, तं जहा—सोतिंदियअसंवरे, (चक्खिंदियअसंवरे, घाणिंदियअसंवरे, जिब्भिंदियअसंवरे), फासिंदियअसंवरे।
असंवर पांच प्रकार का कहा गया है, जैसे
१. श्रोत्रेन्द्रिय-असंवर, २. चक्षुरिन्द्रिय-असंवर, ३. घाणेन्द्रिय-असंवर, ४. रसनेन्द्रिय-असंवर, ५. स्पर्शनेन्द्रियअसंवर (१३८)। संजम-असंजम-सूत्र
१३९- पंचविधे संजमे पण्णत्ते, तं जहा—सामाइयसंजमे, छेदोवट्ठावणियसंजमे, परिहारविसुद्धियसंजमे, सुहुमसंपरागसंजमे, अहक्खायचरित्तसंजमे।
संयम पांच प्रकार का कहा गया है, जैसे१. सामायिक-संजम— सर्व सावध कार्यों का त्याग करना। २. छेदोपस्थानीय-संयम- पंच महाव्रतों का पृथक्-पृथक् स्वीकार करना। ३. परिहारविशुद्धिक-संयम- तपस्या विशेष की साधना करना। ४. सूक्ष्मसांपरायसंयम- दशम गुणस्थान का संयम।।
५. यथाख्यातचारित्रसंयम- ग्यारहवें गुणस्थान से लेकर उपरिम सभी गुणस्थानवी जीवों का वीतराग संयम (१३९)।
१४०- एगिंदिया णं जीवा असमारभमाणस्स पंचविधे संजमे कजति, तं जहा— पुढविकाइयसंजमे, (आउकाइयसंजमे, तेउकाइयसंजमे, वाउकाइयसंजमे), वणस्सतिकाइयसंजमे।
एकेन्द्रियजीवों का आरम्भ-समारम्भ नहीं करने वाले जीव को पांच प्रकार का संयम होता है, जैसे
१. पृथ्वीकायिक-संयम, २. अप्कायिक-संयम, ३. तेजस्कायिक-संयम, ४. वायुकायिक-संयम, ५. वनस्पतिकायिक-संयम (१४०)।
१४१- एगिंदिया णं जीवा समारभमाणस्स पंचविहे असंजमे कजति, तं जहा— पुढविकाइयअसंजमे, (आउकाइयअसंजमे, तेउकाइयअसंजमे, वाउकाइयअसंजमे), वणस्सतिकाइय-असंजमे।
एकेन्द्रिय जीवों का आरम्भ करने वाले को पांच प्रकार का असंयम होता है, जैसे१. पृथ्वीकायिक-असंयम, २. अप्कायिक-असंयम, ३. तेजस्कायिक-असंयम, ४. वायुकायिक-असंयम,