Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पंचम स्थान तृतीय उद्देश
इन पांच कारणों से सूत्र को सीखना चाहिए (२२४)। कल्प-सूत्र
२२५- सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु विमाणा पंचवण्णा पण्णत्ता, तं जहाकिण्हा, (णीला, लोहिता, हालिहा), सुक्किल्ला।
सौधर्म और ईशान कल्प के विमान पांच वर्ण के कहे गये हैं, जैसे१. कृष्ण, २. नील, ३. लोहित, ४. हारिद्र, ५. शुक्ल (२२५)। २२६- सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु विमाणा पंचजोयणसयाइं उर्दु उच्चत्तेणं पण्णत्ता। सौधर्म और ईशान कल्प के विमान पांच सौ योजन ऊंचे कहे गये हैं (२२६)।
२२७– बंभलोग-लंतएसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिजसरीरगा उक्कोसेणं पंचरयणी उठें उच्चत्तेणं पण्णत्ता।
ब्रह्मलोक और लान्तक कल्प के देवों के भवधारणीय शरीर की उत्कृष्ट ऊंचाई पांच रनि (हाथ) कही गई है (२२७)। बंध-सूत्र
२२८– णेरइया णं पंचवण्णे पंचरसे पोग्गले बंधेसु वा बंधंति वा बंधस्संति वा, तं जहा किण्हे, (णीले, लोहिते, हालिद्दे), सुक्किल्ले। तित्ते, (कडुए, कसाए, अंबिले), मधुरे।।
नारक जीवों ने पांच वर्ण और पांच रस वाले पुद्गलों को कर्मरूप से भूतकाल में बांधा है, वर्तमान में बांध रहे हैं और भविष्य में बांधेगे, जैसे
१. कृष्ण वर्णवाले, २. नील वर्णवाले, ३. लोहित वर्णवाले, ४. हारिद्र वर्णवाले और ५. शुक्ल वर्णवाले तथा—१. तिक्त रसवाले, २. कटु रसवाले, ३. कषाय रसवाले, ४. अम्ल रसवाले और ५. मधुर रसवाले (२२८)।
२२९– एवं जाव वेमाणिया।
इसी प्रकार वैमानिकों तक के सभी दण्डकों के जीवों ने पांच वर्ण और पांच रस वाले पुद्गलों को कर्म रूप से भूतकाल से बांधा है, वर्तमान में बांध रहे हैं और भविष्य में बांधेगे (२२९)। महानदी-सूत्र
२३०- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं गंगं महाणदिं पंच महाणदीओ समप्पेंति, तं जहा—जउणा, सरु, आवी, कोसी, मही।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण भाग में (भरत क्षेत्र में) पांच महानदियां गंगा महानदी को समर्पित होती हैं, अर्थात् उसमें मिलती हैं, जैसे—१. यमुना, २. सरयू, ३. आवी, ४. कोसी, ५. मही (२३०)।
२३१- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं सिंधुं महाणदिं पंच महाणदीओ समप्पेंति,