Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रम्
दत्ति-सूत्र
१३०- पंचमासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स कप्पंति पंच दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, पंच पाणगस्स। ___पंचमासिकी भिक्षुप्रतिमा को धारण करने वाले अनगार को भोजन की पाँच दत्तियाँ और पानक की पाँच दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है (१३०)। उवघात-विशोधि-सूत्र
१३१- पंचविधे उवघाते पण्णत्ते, तं जहा—उग्गमोवघाते, उप्पायणोवघाते, एसणोवघाते, परिकम्मोवघाते, परिहरणोवघाते।
उपघात (अशुद्धि-दोष) पांच प्रकार का कहा गया है, जैसे१. उद्गमोपघात- आधाकर्मादि उद्गमदोषों से होने वाला चारित्र का घात। २. उत्पादनोपघात- धात्री आदि उत्पादन दोषों से होने वाला चारित्र का घात। ३. एषणोपघात - शंकित आदि एषणा के दोषों से होने वाला चारित्र का घात। ४. परिकर्मोपघात— वस्त्र-पात्रादि के निमित्त से होने वाला चारित्र का घात। ५. परिहरणोपघात— अकल्प्य उपकरणों के उपभोग से होने वाला चारित्र का घात (१३१)।
१३२— पंचविहा विसोही पण्णत्ता, तं जहा—उग्गमविसोही, उप्पायणविसोही, एसणविसोही, परिकम्मविसोही, परिहरणविसोही।
विशोधि पाँच प्रकार की कही गई है, जैसे१. उद्गमविशोधि— आधाकर्मादि उद्गम-जनित दोषों की विशुद्धि। २. उत्पादनविशोधि- धात्री आदि उत्पादन-जनित दोषों की विशुद्धि। ३. एषणाविशोधि- शंकित आदि एषणा-जनित दोषों की विशुद्धि। ४. परिकर्मविशोधि— वस्त्र-पात्रादि परिकर्म-जनित दोषों की विशुद्धि।
५. परिहरणविशोधि— अकल्प्य उपकरणों के उपभोग-जनित दोषों की विशुद्धि (१३२)। दुर्लभ-सुलभ-बोधि-सूत्र
१३३- पंचहिं ठाणेहिं जीवा दुल्लभबोधियत्ताए कम्मं पकरेंति, तं जहा—अरहंताणं अवण्णं वदमाणे, अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स अवण्णं वदमाणे, आयरियउवज्झायाणं अवण्णं वदमाणे, चाउवण्णस्स संघस्स अवण्णं वदमाणे, विवक्क-तव-बंभचेराणं देवाणं अवण्णं वदमाणे।
पाँच कारणों से जीव दुर्लभबोधि करने वाले (जिनधर्म की प्राप्ति को दुर्लभ बनाने वाले) मोहनीय आदि कर्मों का उपार्जन करते हैं, जैसे—
१. अर्हन्तों का अवर्णवाद (असद्-दोषोद्भावन—निन्दा) करता हुआ। २. अर्हत्प्रज्ञप्त धर्म का अवर्णवाद करता हुआ।